पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८०

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आल्हाकामनावन । ४७३ सवैया॥ स्वस्थिर चिच विचार करौ यह नाथ सबै विधि बात अनैसी। रूप औ यौचन छाँडितिया सोपिया क्यहिभांतिकही तुमऐसी।। धीरजवन्त कुलीनन की गति नाथ विचारि कहो तुम कैसी। बात सुहात नहीं ललिते अनरीतिकि प्रीतिकरी तुम जैसी १७७ । । सुनिकै बातें ये पदमिनि की बोला फेरि कनौजीराय ॥ कउने गँवारे की विटियाहै हमते टेढ़ि मेढ़ि बतलाय १७० ऐसी बातें अब बोलेना दशनन चापि जीभको लेय ।। जो नहिं जावै सँग ऊदन के तौसरजगतपयशकोदेय १७६ कहा न मानें हम काहू को निश्चय जानु मोर प्रस्थान । इतना सुनिकै कुसुमा बोली स्वामी करोबचन परमान १८० राति वसेरा करि महलन मा भुरही कूच दिह्यो करवाय ।। खरे संगकी सखी सहिलरी दुइदुइ बालकरहीं खिलाय १८१ दुनियादारी कछु जानी ना कबहुँ न धरा सेज पै पाएँ । कैसे कास्त्र हम यौवन का प्रीतम साँचदेउ बतलाय १०२ तुम्हें मोहेवे का जाना रह नाहक लाये गवन हमार ।। मई बाप का फिरि गरिआवै दैक बार बार धिक्कार १८३ सुनि सुनि बातें ये पदमिनिकी बोला फेरि कनौजीराय ॥ लौटि मोहोवे ते आवव जब सनी संग करव तव आय १८४ द्वार बनाफर उदयसिंह हैं रानी मोह देउ विसराय ।। संकट टारे चिन मल्हना के हमकोमोगरोगदिखलाय १८५ साथ बनाकर के हम जै अइहें जीति पिथौराराय॥ । कोरनि गै? सब दुनिया मा रानी संग करव तन प्राय १८६