सवैया॥
स्वस्थिर चित विचार करौ यह नाथ सबै विधि बात अनैसी।
रूप औ यौचन छाँडितिया सोपिया क्यहिभांतिकही तुमऐसी।।
धीरजवन्त कुलीनन की गति नाथ विचारि कहो तुम कैसी।
बात सुहात नहीं ललिते अनरीतिकि प्रीतिकरी तुम जैसी १७७
सुनिकै बातेैं ये पदमिनि की बोला फेरि कनौजीराय ॥
कउने गँवारे की बिटियाहै हमते टेढ़ि मेढ़ि बतलाय १७८
ऐसी बातैं अब बोलेना दशनन चापि जीभको लेय ।।
जो नहिं जावैं सँग ऊदन के तौसबजगतअयशकोदेय १७९
कहा न मानैं हम काहू को निश्चय जानु मोर प्रस्थान ।
इतना सुनिकै कुसुमा बोली स्वामी करो बचन परमान १८०
राति वसेरा करि महलन मा भुरही कूच दिह्यो करवाय ।।
खरे संगकी सखी सहिलरी दुइदुइ बालकरहीं खिलाय १८१
दुनियादारी कछु जानी ना कबहुँ न धरा सेज पै पायँ ।
कैसे काटव हम यौवन का प्रीतम साँचदेउ बतलाय १०२
तुम्हें मोहेवे का जाना रह नाहक लाये गवन हमार ।।
मई बाप का फिरि गरिआवै दैकै बार बार धिक्कार १८३
सुनि सुनि बातें ये पदमिनिकी बोला फेरि कनौजीराय ॥
लौटि मोहोवे ते आवब जब रानी संग करव तव आय १८४
द्वार बनाफर उदयसिंह हैं रानी मोह देउ विसराय ।।
संकट टारे बिन मल्हना के हमकोभोगरोगदिखलाय १८५
साथ बनाकर के हम जैहैं अइहैं जीति पिथौराराय॥
कीरनि गैहैं सब दुनिया मा रानी संग करव तन आय १८६