पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८७

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आल्हखण्ड । ४८६ कीन प्रतिज्ञा हम कुड़हरिमा लोटति नगर ल्याव लुटवाय ।। साँची करिये यहि समया मा मानो कही बनाफरराय २५४ इतना सुनिकै ऊदन जरिगे तुरतै हुकुम दीन फरमाय ॥ लागें तो अब कुड़हरि मा सवियाँगर्द देउमिलवाय २६० इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो कही बनाफरराय ॥ गंगाधर कुड़हरि का राजा मामा सगो हमारो आय २६१ लिखिकै चिट्ठी दै धावन को उनको खबरि देउ करवाय ॥ मैने तुम्हरे लाखनि आये कोड़ा आपु देउ पठवाय २६२ सुनिकै बातें लखराना की चिट्ठी लिखा वनाफरराय ।। तुरतै धावन को बुलवायो औ कुड़हरिको दीनपठाय२६३ लैकै चिट्ठी धावन चलिभा औं दरवार पहूँचाजाय । चिट्ठी दीन्ह्यो गंगाधर को धावनहाथजोरिशिस्नाय २६४ कही हकीकति सब गंगा ते जो कछु कह्यो वनाफरराय ।। सुनि संदेशा पढ़ि चिट्ठी को ठाकुरक्रोधकीनअधिकाय२६५ तुरत नगड़ची को बुलवायो डका दीन तहाँ बजवाय ॥ कह्यो संदेशा फिरि धावन ते आल्है खबरि जनावोजाय२६६ राजा श्रावत समरभूमि में कोड़ा लेउ तहाँ पर आय ॥ इतना सुनिकै धावन चलिभा आल्है खबरि वताईजाय २६७ बाजे डका ह्याँ कुड़हरि मा क्षत्री होन लागि तय्यार ॥ हथी चढ़ेया हाधिन चढ़िगे बॉके घोड़न मे असवार २६८ झीलम बखतरपहिरिसिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ।। रणकी मौहरि वाजन लागी रणकाहोनलागव्यवहार२६६ चढ़िक हथिनी गंगा मकुर तुरतै कूच दीन करवाय ।। चारि घरी का अरसा गुजरा पहुँचे समरभूमिमाआय २७०