कीन प्रतिज्ञा हम कुड़हरिमा लौटति नगर ल्याव लुटवाय ।।
साँची करिये यहि समया मा मानो कही बनाफरराय २५४
इतना सुनिकै ऊदन जरिगे तुरतै हुकुम दीन फरमाय ॥
लागैं तोपैं अब कुड़हरि मा सवियाँगर्द देउमिलवाय २६०
इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो कही बनाफरराय ॥
गंगाधर कुड़हरि का राजा मामा सगो हमारो आय २६१
लिखिकै चिट्ठी दै धावन को उनको खबरि देउ करवाय ॥
भैने तुम्हरे लाखनि आये कोड़ा आपु देउ पठवाय २६२
सुनिकै बातें लखराना की चिट्ठी लिखा वनाफरराय ।।
तुरतै धावन को बुलवायो औ कुड़हरिको दीनपठाय२६३
लैकै चिट्ठी धावन चलिभा औं दरवार पहूँचाजाय ।
चिट्ठी दीन्ह्यो गंगाधर को धावनहाथजोरिशिरनाय २६४
कही हकीकति सब गंगा ते जो कछु कह्यो वनाफरराय ।।
सुनि संदेशा पढ़ि चिट्ठी को ठाकुरक्रोधकीनअधिकाय२६५
तुरत नगड़ची को बुलवायो डंका दीन तहाँ बजवाय ॥
कह्यो संदेशा फिरि धावन ते आल्है खबरि जनावोजाय२६६
राजा आवत समरभूमि में कोड़ा लेउ तहाँ पर आय ॥
इतना सुनिकै धावन चलिभा आल्है खबरि वताईजाय २६७
बाजे डंका ह्याँ कुड़हरि मा क्षत्री होन लागि तय्यार ॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बॉके घोड़न मे असवार २६८
झीलम बखतरपहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ।।
रणकी मौहरि वाजन लागी रणकाहोनलागव्यवहार२६६
चढ़िकै हथिनी गंगा ठाकुर तुरतै कूच दीन करवाय ।।
चारि घरी का अरसा गुजरा पहुँचे समरभूमिमाआय २७०
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आल्हखण्ड । ४८६
