पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हाकामनावना १८७ २५ जहंना हाथी गंगाधर का तहँ पर गये कनौजीराय ।। कहि समुझावा भल मामा का कोड़ा अवै देउ मँगवाय २७१ नहीं बनाफर उदयसिंह जी कुड़हरि गर्द देय करवाय ॥ कौन दुसरिहा है आल्हा का सस्वर कर समरमें आय २७२ त्यहिते तुमका समुझाइत है मामा कूच देउ करवाय ।। इतना सुनिकै गंगा जरिगे बोले सुनो कनौजीराय २७३ काह हकीकति है आल्हा के हमते कोड़ा लेयँ मँगाय ।। एक वनाफर के गिन्ती ना लाखनचदें बनाफरधाय २७४ हमते कोड़ा को पहें ना भैने साँच दीन बतलाय ।। इतना सुनिकै चले कनौजी तम्बुन फेरि पहुँचे आय २७५ बत्ती दैकै दुहुँ तरफा ते तोपन दीन्हीं गरि मचाय ।। अररर अररर गोला छूटे हाहाकारशब्दगा छाय २७६ गोला लागै ज्यहि हाथी के मानो गिरा धौरहर आय ।। जउने ऊंट के गोला लागै तुरतै कूल जुदा लैजाय २७७ गोला लागै ज्यहि क्षत्री के साथै उड़ा चील्ह अस जाय ।। जउने स्थमा गोला लागै ताके टूक टूक लैजायँ २७८ गोला लागै ज्यहि घोड़े के मानो मगर कुल्याचे खायँ ।। अंधाधुंध भा दूनों दलमा धुवनारहा सरगमें छाय २७६ चुकी वरूदें जब तोपन की तब फिरि मारु बन्द द्वैजाय ।। दूनों दल आगे को बदिगे रहिगा एकखेतरणाय २८० कहुँकहुँ भाला कहुँकहुँ बलछी कहुँ कहुँ कड़ाबीनकी मार ॥ गोली ओला सम कहुँ बरौं कोताखानी चलें कटार २८१ मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्की धार ।। मुण्डन केरे मुड़चौरा मे औरुण्डनके लगे पहार२८२