पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५३१

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भाल्हखण्ड । ५३० ये सब पापी हैं प्रथमै के तरिगे रामचरण को ध्याय ४ स्वई भरोसा धरि जियरेमा नितप्रति धरों चरणपरमाथ ।। पारलगायो भवसागर ते स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ ५ छोड़ि सुमिरनी अब रघुबर के बेला गौन कहीं सब गाय ।। ब्रह्मा अकुर दिल्ली जैहें पैहें विजय पिथोराराय ६ अथ कथामसंग ॥ एक समैया इक औसर मा बैठे सभा रजा परिमाल । आल्हा ऊदन इन्दल देवा लाखनि साथ और नरपाल ! को गति वरणे त्यहि समयाकै. भारी लाग राजदरवार ।। त्यही समैया त्यहि औसरमा आवा उरई का सरदार २ आवो आवो बैठो बैठो राजै कीन बहुत सतकार ॥ बैठिग ठाकुर उरई वाला आला चुगुलन मा सरदार ३ विना बुलाये ते बोला फिरि तुम सुनिलेउ रजापरिमाल । औसर ऐसो फिरि पैहो ना ब्रह्मा गौनले उ यहिकाल ४ वैठि कनौनी लाखनिराना बैठे देशराज के लाल ।। लैक वीरा यहि औसर मा तुम धरिदेउ रजापरिमाल ५ कौन वहादुर यहि समया मा वेला गौन चवावे पान ।। स्यावसि स्यावसिमाहिलठाकुर तुम्हरे बचन ठीक परमान ६ इतना कहिकै परिमालिक जी तुरतै धरा तहाँपर पान ।। है कोउ क्षत्री तेहेवाला लेवै पान पान सो ज्यान ७ सुनिक बातें परिमालिक की सब कोउ गये सनाकाखाय ।। बोलि न आवा क्यहु ठाकुरते आनन गये तुरत मुरझाय चारि घरीदिन यहिविधि बीता कोउ न पान पास समुहान ।। तवे बहादुर द्यावलि वाला पहुँचा उदयसिंह तहँ ज्यान ६