पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५६०

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बेलाकेगोनेकादितीययुद्ध। ५५६ आदि भयकर के ऊपर ते गई हाँक देय चौहान •७४ मारो मारो ओ रजपूतो डोला लेवो तुरत छिनाय ।। जान न पावे द्यावलिवाले इनके देवों मूड़ गिराय १७५ गरुई हाँके सुनि पिरथी की जूझन लागि सिपाही ज्वान। उड़े बेंदुला वचऊदन • का का खाली होत जात मैदान १७६ धाँधू धनुवाँ के मुर्चा में बाजे घूमि धूमि तलवार । अंगद राजा के मुर्चा मा सय्यद बनरसका सरदार१७७ औरो क्षत्री समरभूमि मा दूनों हाथ करें तलवार । को गति बरणे त्यहि समया के अद्भुत होय तहाँपरमार १७८ पैग पैग पै पैदल गिरिगे दुइ दुइ कसी गिरे असवार । मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्ककी धार १७६ सोहे लहासें तहँ हाथिन की · छोटे पर्वत के अनुहार ।। परी लहासें जो घोड़न की तिनकोजानोंनदीकगार १८० मुण्डन केरे मुड़चौड़ा भे औ रुण्डन के लगे पहार ॥ डोला सौंप्यो फिरि धनुवाँको चलिभाकनउजकासरदार१८१ जौनी दिशिको लाखनि जावें तादिशि होय घोरघमसान ।। बड़े लड़ेया दिल्ली वाले ताहर समरधनीचौहान १८२ इनि हनि मारै रजपूतन का . घायल होयँ अनेकनज्ञान ।। मान न रहिगा क्यहु क्षत्रीका सब के टूटिगये अरमान १८३ फूटि फूटि शिर चरण है गे पूरण भयो समर मैदान । कहलग गाथा त्यहि समयाके ललिते करैयहांपरगान १८४ सो भल जानत नीकी विधि जो यह दीख्यो युद्ध ललाम ॥ सम्मुख जूमैं जे मुर्चा में ते सब जायें रामके धाम १८५ यही तपस्याहै वत्री के सम्मुख लहै समर मैदान ।।