आदि भयंकर के ऊपर ते गरुई हाँक देय चौहान ७४
मारो मारो ओ रजपूतो डोला लेवो तुरत छिनाय ।।
जान न पावैं द्यावलिवाले इनके देवों मूड़ गिराय १७५
गरुई हाँकै सुनि पिरथी की जूझन लागि सिपाही ज्वान।
उड़ै बेंदुला बघऊदन का खाली होत जात मैदान १७६
धाँधू धनुवाँ के मुर्चा में बाजै घूमि घूमि तलवार ।।
अंगद राजा के मुर्चा मा सय्यद बनरस का सरदार १७७
औरो क्षत्री समरभूमि मा दूनों हाथ करैं तलवार ।।
को गति बरणै त्यहि समया कै अद्भुत होय तहाँ परमार १७८
पैग पैग पै पैदल गिरिगे दुइ दुइ कसी गिरे असवार ।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्ककी धार १७९
सोहैं लहासैं तहँ हाथिन की छोटे पर्वत के अनुहार ।।
परी लहासैं जो घोड़न की तिनको जानों नदी कगार १८०
मुण्डन केरे मुड़चौड़ा भे औ रुण्डन के लगे पहार ॥
डोला सौंप्यो फिरि धनुवाँको चलिभा कनउज का सरदार १८१
जौनी दिशिको लाखनि जावैं तादिशि होय घोरघमसान ।।
बड़े लड़ैया दिल्ली वाले ताहर समर धनी चौहान १८२
हनि हनि मारै रजपूतन का घायल होयँ अनेकन ज्वान ।।
मान न रहिगा क्यहु क्षत्रीका सब के टूटिगये अरमान १८३
फूटि फूटि शिर चरण ह्वै गे पूरण भयो समर मैदान ।
कहँलग गाथा त्यहि समया कै ललिते करै यहां पर गान १८४
सो भल जानत हैं नीकी बिधि जो यह दीख्यो युद्ध ललाम ॥
सम्मुख जूमैं जे मुर्चा में ते सब जायँ राम के धाम १८५
यही तपस्याहै क्षत्री के सम्मुख लड़ै समर मैदान ।।
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बेला के गौने का द्वितीय युद्ध । ५५६
