पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५६२

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बेलाकेगौनकाद्वितीययुद्ध । ५६१ पाँव पिचारी का धरिये ना चहुतन धजी२उडिजाय १६८ पता लगाव ह्याँ लाखनि का आल्हा केर लहुवा भाय॥ मारत मारत रजपूतन को पहुँचा जहाँ पिथौराराय १६६. तीर कमनिया ले हाथेमा मारन हेतु भयो तैयार ॥ तब ललकारा नर नाहर यहु ठाकुर उदयसिंह सरदार २०० तुम्हें मुनासिब यह नाहीं है राजा समरधनी चौहान ॥ नहीं वरोवरिके लखाना जोतुम लीन्ही तीरकमान२०१ मुनिक वाते वघऊदन की कायल भये वीर चौहान ॥ चुप्पै होदा पर रख दीनी राजा अपनी तीरकमान २०२ यहु दलगंजन की पीठी मा ताहर आय गयो त्यहिवार ॥ भये कनौजी त्यहिके सम्मुख लागे करन तहाँ पर मार २०३ ऊदन अंगद का मुर्चा भा दोऊ लड़न लागि सरदार ॥ दोऊ मारे तलवारी सों दोऊ लेय ढालपर वार २०४ तब ललकारयो फिरि धाँधू को यहु महराज पिथौराराय ।। जाय न डोला अब मोहने का लायो जाय तडाकाधाय २०५ इतना सुनिकै घाँधू चलिमे डोला पास पहूँचे जाय॥ तब ललकारा तहँ धनुवाँने क्षत्री खबरदार लैजाय २०६ पाँव अगाड़ी का डारेना नहिं यमपुरी दे दिखताय ।। कहा न माना कछु धनुवाँका धाँधू चला तडाका धाय २०७ तेलिके बच्चा कचा खैहौं लुच्चा ठाढ़ होय यहिवार ।। सच्चा लड़िका जो क्षत्रीका तो मुखधाँसिदेउँतलवार २०८ इतना कहिके धांधु क्षत्री अँगुरिन भालालीन उठाय ॥ परिगाघाव जाँचपरआय २०६ डोला तुरत लीन उठवाय ।। ताकि के मारा सो धनुवाँ का गिरिगा धतुवाँ जब खेतन मा