डोला उठिगा जब बेला का सय्यद गयो तड़ाका आय २१०
औ ललकारा त्यहि धाँधू का अब ना धरयो अगारी पाँय ।।
जान न पैहौ तुम सय्यद ते क्षत्री साँच दीन बतलाय २११
इतना सुनिकै अंगद राजा तहँ पर गयो तड़ाका आय ।।
भूरी हथिनी के चढ़वैया आये तहाँ कनौजीराय २१२
ताहर नाहर दलगंजन पर सोऊ बेगि पहूँचा आय ।।
कठिन लड़ाई भै डोला पर हमरे बूत कही ना जाय २१३
को गति बरणै त्यहि समया कै बाजै घूमि घूमि तलवार॥
सुनि सुनि गाजै रजपूतन की कायर डारि भागि हथियार २१४
को गति बरणै रण शूरन की दूनों हाथ करैं तलवार ॥
कीरति प्यारी जिन क्षत्रिन को तिनको भलाकरैं करतार २१५
कीरति वाले लाखनि ताहर ठाना घोर शोर घमसान।
यहु महराजा कनउज वाला लीन्ही गुर्ज तड़ाका तान २१६
ऐंतिकै मारा सो ताहर के मस्तक परी घोड़के जाय ।।
घोड़ा भाग्यो तहँ ताहर का डोला लीन कनौजीराय २१७
बिना नृपति के सब सेना तहँ रणमा कौन भांति समुहाय ॥
बिन बर कन्या ज्यों मड़ये मा भौरी कौन करावन जाय २१८
दुलहिन दुलहा की समता मा ममता कौन खवैया भात ।।
मिलै रूपैया वरतौनी ना तबलग देखिपरै तहँलात २१९
तैसे मुर्चा की बातैं हैं यारो जानि लेउ सब घात ।।
घोड़ा भाग्यो जब ताहर का लाग्योनहीं क्यहूकी लात २२०
डोला चलिभा तब बेला का जहॅ पर रहै चँदेलाराय ।।
ब्रह्मा ठाकुर के तम्बू मा ह्वैगा भीरमार अधिकाय २२१
बाजै डंका अहतका के शङ्का सबन दीन बिसराय ॥
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आल्हखण्ड । ५६२
