पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५६३

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आल्ह खण्ड । ५६२ डोला उठिगा जब वेला का सय्यदगयोतड़ाकाआय २१० नो ललकारा त्यहि धाँधू का अब ना धस्यो अगारी पाय ।। जान न पैहो तुम सय्यद ते क्षत्री साँच दीन बतलाय २११ इतना सुनिकै अंगद राजा तहँ पर गयो तड़ाका आय ।। भूरी हथिनी के चढ़वैया आये तहाँ कनौजीराय २१२ ताहर नाहर दलगंजन पर सोऊ- बेगि पहूँचा आय ।। कठिन लड़ाई भै डोलों पर हमरे बूत कही ना जाय २१३ को गति बरणे त्यहि समयाकै बाजै धूमि धूमि तलवार॥ सुनिसुनि गाजै रजपूतन की कायरडारिभागिहथियार २१४ को गति वरणे रण शूरनकी दूनों हाथ करें तलवार ॥ करति प्यारी जिन क्षत्रिन को तिनको भलाकर करतार २१५ कीरति वाले लाखनि ताहर अना घोर शोर घमसान। यहु महराजा कनउज वाला लीन्ही गुर्जतड़ाकातान २१६ ऐत्रिकै मारा सो ताहर के मस्तक परी घोड़के जाय ।। घोड़ा भाग्यो तहँ ताहर का डोला लीन कनौजीराय २१७ विना नृपति के सब सेना तहँ रणमा कौन भांति समुहाय ॥ बिन बर कन्या ज्यों मड़ये मा भौरी कौन करावनजाय २१८ दुलहिन दुलहा की समता मा ममता कौन खवैया भात ।। मिले हौया वरतौनी ना तबलग देखिपरै तहलात २१६ तैसे मुर्चा की बातें हैं यारो जानिलेउ सब घात ।। घोड़ा भाग्यो जब ताहर का लाग्योनहीं क्यहूकीलात २२० डोला चलिभा तब वेला का जहें पर रहै चंदेलाराय ।। ब्रह्मा ठाकुर के तम्बू मा द्वैगै भीरमार अधिकाय २२१ बाजे या अहतका के शका सबन दीन विसरायः॥