पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५८१

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आल्हखण्ड । ५८० हुकुम सुनावा महराजा का सवियाँहालकहासमुझाय१६५ लौटिकै मुर्चा ते आउब जब तुम्हरो करब मनोरथ आय ॥ ऐसे कहिके ताहर नाहर चलिभेवहुत मानिसमुझाय १६६ आये फौजन में रण नाहर डंका तुरत दीन बजवाय ।। बाजत डंका अहतंका के लश्करकूचदीन करवाय १६७ चढ़ि दलगंजन की पीठी मा मनमा श्रीगणेश पद ध्याय ।। बन्दन कीन्यो पितु चरणनका चन्दन अक्षत फूलचढ़ाय १६८ प्राण निछावरि फिरि मनते करि चलिभा दिल्ली राजकुमार ।। गर्जत तर्जत लर्जत आवत नाहर दिल्ली का सरदार १६६ आयकै पहुँचा समर भूमि मा गर्लई हाँक कहा ललकार ॥ लेय चंदेला अब अधकर को आयो दिल्ली राजकुमार १७० सुनिक बातें ये ताहर की बेला मोहवे का सरदार।। असल जनाना मर्दाना जो अनासमरआयत्यहिवार १७१ पहिले मारुइ भइँ तोपन की पाछे चलन लागि तलवार । सव हथियारन में तलवारी याही धर्मरूप अवतार १७२ आस्यसाही जे उत्साही गाही धर्म युद्ध के यार ।। तौन सिपाही बेपरवाही छाँड़ेप्राणआशत्यहिवार १७३ तड़तड़तड़ तड़ तड़ तड़काटें पार्दै मुण्डन भूमि अपार ।। मुरि२ गिरि २ लरि२ कितन्यो जूझनलागि शूरसरदार १७४ झम झम झम झम् भालावरसैं तरसैं घावदेखि जिययार ।। भम् भम् भम् भम् क्षत्री भमके चमचमाचम्मतलवार १७५ गम् गम् गम् गम् ढोलकगमक दमकै शक्ति शूल विकराल ॥ मारु मारु के मौहरि बाजे वाजै हाव हाव करनाल १७६ जूझे क्षत्री दुहुँतरफा के नदिया वही रक्त की धार॥