पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५८३

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आल्हखण्ड । ५८२ बाजत डंका अहतंका के तम्बुन फेरि पहूँची आय १८९ लश्कर पहुँच्यो सब दिल्लीमा घर घर खबर गई यह छाय॥ बेला मारा है तार को कोऊ रंधा भात ना खाय १६० रानी अगमा के महलन मा । पहुँची खबरि तड़ाका प्राय ।। को गति वाणे त्यहिममयाकै विपदागई महल में छाय १६१ त्रिघरै रानी रनिवासे मा गिरि गिरि परै पछाराखाय । रूप शील गुण वर्णन करिकै मनमा वारवार पचिताय १६२ नाहक बेला तू पैदा भइ डारे बंश नाश करवाय ॥ त्वरे वियाहेते गौने लौ जूझे सातपुत्र रणजाय १६३ दियावरैया अब महलन में कोऊ नहीं पर दिखलाय ॥ सातपुत्र की मैं महतारी सो निरवंश डरे करवाय १६४ केसि निर्दयी वेला डेंगे मारेसि समर आफ्नो भाय । इतना कहिकै रानी अगमा फिरिगिरिगई मुखिाय १६५ छाय उदासी गै दिल्ली मा कहुँ नहिं मसातलक भन्नाय॥ घरं घर स्य्यत अपने रोवै दर दरगाथ गई यहछाय १६६ वंदला लीन्यो चंदेले का बेला समरभूमि में आय ॥ यहि अलबेला अव गाथा को पूरणकीन यहाँते भाय १६७ खेत छुटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाको आय ।। चरि चरि गौवें घरका डगर्स पक्षी चले वसेरन धाय १६८ गिरेआलसीखटिया तकितकि सन्तन धुनी दीन परचाय ।। आशिर्वाद देई मुन्शी सुत जीवो प्रागनरायणभाय १६६ रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहँ चन्द औ सूर ॥ पालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रहो सदा भरपूर २०० माय नवावों पितु माता को जिन बल परिभई यह गाय ॥