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आल्हखण्ड । ५८२

बाजत डंका अहतंका के तम्बुन फेरि पहूँची आय १८९
लश्कर पहुँच्यो सब दिल्लीमा घर घर खबर गई यह छाय ॥
बेला मारा है ताहर को कोऊ रँधा भात ना खाय १९०
रानी अगमा के महलन मा पहुँची खबरि तड़ाका आय ।।
को गति बरणै त्यहिसमया कै विपदागई महल में छाय १९१
चिघरै रानी रनिवासे मा गिरि गिरि परै पछाराखाय ।
रूप शील गुण वर्णन करिकै मनमा बारबार पछिताय १९२
नाहक बेला तू पैदा भइ डारे बंश नाश करवाय ॥
त्वरे बियाहेते गौने लौं जूझे सातपुत्र रणजाय १९३
दियावरैया अब महलन में कोऊ नहीं परै दिखलाय ॥
सातपुत्र की मैं महतारी सो निरबंश डरे करवाय १९४
केसि निर्दयी बेला ह्वैगै मारे सि समर आफ्नो भाय ।।
इतना कहिकै रानी अगमा फिरि गिरि गई मूर्च्छाखाय १९५
छाय उदासी गै दिल्ली मा कहुँ नहिं मसातलक भन्नाय॥
घर घर रय्यत अपने रोवै दर दर गाथ गई यहछाय १९६
बदला लीन्ह्यो चंदेले का बेला समरभूमि में आय ॥
यहि अलबेला अब गाथा को पूरणकीन यहाँते भाय १९७
खेत छुटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाको आय ।।
चरि चरि गौवें घरका डगसें पक्षी चले बसेरन धाय १९८
गिरे आलसी खटिया तकि तकि सन्तन धुनी दीन परचाय ।।
आशिर्वाद देउँ मुन्शी सुत जीवो प्रागनरायणभाय १९९
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहो सदा भरपूर २००
माथ नवावों पितु माता को जिन बल परिभई यह गाथ ॥