पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६१

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र आल्ह खण्ड । ५६ नाहिं छुवउँ तलवारि न हाथ न मातु कहावों पूत तुम्हारा । ठाकुर सोइ कहें ललिते जो मरे रण खेतन में असिधारा ६८ इतनी कहिकै ऊदन विगरे ओ मातासों लगे वतान । अब हम जइह गढ़ माड़ो को हमरो भलाकरें भगवान ६६ कहा न मनिहें हम काहू को हमरो सत्य वचन करु कान ॥ घर में माता अब तुम बैठो मनमें धरे रामको ध्यान ७० बराबरस का क्षत्रिक लरिका ज्यहिके ऐंची अवै कमान ।। ॥ त्यहि का बैरी मुखते स्वावै जिन्दा मुरदाके अनुमान ७१ बातें सुनिक -ये ऊदन की द्यावलि हाथ पकरितवलीन।। पकरिकै बाहू बघऊदन की आल्हानिकटगमनफिरिकीन७२ मलखे सुलखे देवा आल्हा ताल्हन बनरस का सरदार ।। आवतदौख्यो जब माता को सबहिनकीन्योरामजुहार ७३ द्यावलि बोली तब ताल्हन ते छोटे देवर लगो हमार॥ माहिल आये हैं उरई ते तिनतेसुनेसिछुटकवाम्बार७४ करिया मारयो म्वरे बाप को सो यहु बदल लेनको जाय ।। जालिम राजा है माड़ो का ताते मोर प्राण घबड़ाय ७५ तुगका सौंपति हों ऊदन को इनका माडो लवो दिखाय॥ इतनी सुनि के आल्हा बोले घरमाँ बैटु लहुरवा भाय ७६ धुआँ न दीखे तू तोपन का ना रण नाँगि दीख तलवार ।। अड़बड़ क्षत्री है माड़ो का । मानप्पयो कहा हमार ७७ इतनी मुनिक ऊदन बोले कहाँ कहा-शाने गां खार।। टॅगी खुपरिया म्वरे बाप की राजा जम्बै क्यरे दुवार ७८ नालति ऐसी रजपूती का दादा जीने को धिक्कार ।। खत्री के समर सकानो ताकोखायँ गिद्धनहिंस्यार'