पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६१४

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बेलासतीअन्तमैदान । ६१३ ' ऊदन बोले तब चौड़ा ते मानो कही चौडियाराय ८२ मरिगे लाखनि जो मुर्चा में तो नहिं जियें बनाफरराय ॥ बिना इकेले लखराना के मरिहैकौनसाथक्यहिआय८३ -३ मित्र कनौजी अस मरिगे जब जी है कौन समर तब भाय ।। मारु चौंड़िया अब जल्दी सों हमरोशोखमोखमिटिजाय ८४ इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतें बैंचिलीन तलवार । ऍड़ लगावा रसबेंदुल के हौदा उपर गयो त्यहिवार ८५ काटि महावत औ हाथी को आपन शीश दीन पकराय ।। काटि शीश तब चौड़ा लीन्ह्यो औधड़गिराधरणिमें आय ८६ ऊदन देवा जगनायक जी सब कोउ मरे समर में आय ।। चौड़ा पिरथी आल्हा इन्दल रहिगे शेष चारि ये भाय ८७ ऊदन जूझे समरभूमि में आल्हा चले तडाका धाय ।। देवी शारदा का वरदानी अम्मरकहै लोक सबगाय ८८ सुना बनाफर जब कानन ते की मरिगये लहुस्वाभाय ।। यकरि बनाफर तब चौंड़ा को मर्दन कीन देह में लाय ८६ मीजि माँजिकै त्यहि चौंडाको आगे हाथी दीन वढाय ॥ आदिभयङ्कर जहें ठाढ़ो थो आल्हा तहाँ पहूचे जाय ६० पकरिक वाहू तहँ पिरथी की आल्हा बाँधिलीनत्यहिठायें ।। नील डरायो नृप आँखिन में बंधन तुरत दीन छुड़वाय ६१ खबरि मोहोवे औं दिल्ली गै की रण बचे तीन जन भाय ।। आल्हा इन्दल पिरथी राजा और न चौथकऊदिखलाय ६२ सुनवाँ फुलवा द्यावलि माता सुनते चलीं तड़ाकाधाय ।। सुनवॉ बोली समर भूमि में आल्हा डारयो बन्धु मरायः३ आल्हा मुखते सुनि सुनवाँ के मनमा ठीक लीन ठहराय॥