पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/६३

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आल्ह खण्ड ५८ पाछे चलिये गढ़माड़ो को जामें काम सिद्ध वैजाय ॥ सम्मत कैकै पाँचो योगी ड्योढ़ी उपर पहूंचे आय ६२ रानी द्यावलि के द्वारेपर योगिन अलख जगायोजाय॥ वाँदी दौरों तब महलन ते द्वारे तुरत पहूंची आय ६३ देखि तमाशा यहु दोरेपर महलन अीं तड़ाका धाय ॥ हाल बतायो सव योगिन का सोऊ गई दारपर आय ६४ रूप देखिकै सव योगिन को द्यावलि खुशी भई अधिकाय ॥ पूँछन लागी फिरि योगिन ते योगी सत्य देव बतलाय ६५ कौन देश ते तुम आयो है जावो कौन देश महराज ॥ जो कछु माँगोम्बरे महलन में पुरवों तौन तुम्हारो काज ६६ इतनी सुनिकै ऊदन बोले माता वचन करो ममकान॥ धोखे योगी के भूलो ना अपनोपुत्र मोहिं तू जान ६७ सुनिक चातें ये ऊदन की द्यावलि बड़ी खुशी द्वैजाय ।। ॥ हृदयलगायो सब लरिकनको आशिर्वाद दीन हर्षाय ४८ ऊदन बोले फिरि माता ते हमरे वचन करो परमान ।। ड्योढ़ी मँगिहों रनिकुशलाकी नापहिचनी करिंगा ज्वान ६६ धरि दे पंजा बरि पीठी मा माड़ो ले वापका दायें । सुनिक बातें ये ऊदन की द्यावलि गोदलीन बैठाय १०० भुजबल पूज्यो सब लरिकनके द्यावलि बार बार बलिजाय ।। जितिहो राजा माडोवाला तुम्हरो वारु नवांका जाय १०१ सुनिके बात सब द्यावलि की चारों धरयो चरण पर माथ ।। बड़ी अनन्दित द्यावलि देके फेरासवन पीठि पर हाथ १०२ विदा मांगिक सब मातासों मनिया देवन गे हर्षाय ।। बड़ा प्रतापी जो मोहवेमौँ अस्तुतिपदनलागशिरनाय १०३