पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७१

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आल्हखण्ड। ६६ जायके पहुँचे बबुरीवनमाँ तहँ पर तम्बू दीन गड़ाय ६० तंग बछेड़न की छोरीगइँ हाथिन होदा धरे उतार। बैठक साजीगय आल्हाकै लागी छोटी बड़ी वजार ६१ लै लै सीधा चले सिपाही भोजन करन हेतु तय्यार ।। वनी रसोइयाँ रजपूतन की ज्वानन खूबकीनज्यवनार ६२ दिन दश बीते बबुरीवनमाँ ग्यरहें बले उदयसिंहराय ।। किहिकीनिंदिया आल्हा सोये औ कव ल्यहँ चापका दायँ ६३ तुरत बुलायोफिरि धबवा का बोल्यो वचन बनाफरराय ।। शकुन विचारो अब जल्दी सौ. माड़ो काम सिद्धि द्वैजाय ६४ सुनिक बातें वघऊदन की देवा पोथी लीन उठाय ॥ सोचि समुझिकै देवा बोल्यो हमरे सुनो वनाफरराय ६५ जल्दी चलिये अब माड़ो को साइति बहुत गई नगच्याय ।। मुनिकै वात ये देवा की वोला बचन बनाफरराय ६६ उठिये दादा सावधान हो नहिं सब जैहैं काम नशाय ॥ मुनिकै वात बघऊदन की आल्हा उठे रामको ध्याय ६७ पाँचो मिलिकै तम्बू चलिमे जहँ पै रहैं धवलदे माय ।। देखिबालकनको द्यावलि फिरि सबको छाती लीनलगाय ६८ बड़ी प्रीति करि मलखाने सों बोली जियो बनाफरराय ।। मस्तक सूंध्यो सब लरिकनको पीठिमें दीन्यो हाथ फिराय ६६ द्यावलि बोली फिरि सय्यदसों राजा बनरस के सरदार ॥ जैसे लड़िका ई हमरे हैं तैसे लड़िका लगें तुम्हार ७० रक्षा कीन्ह्यो सब लड़िकन के द्यावर बड़ा भरोसा वार । मुनिक बातें ये द्यावलि की बोला बनरस का सरदार ७१ वार न वांका इनका जाई , द्यावलि मानो कही हमार॥