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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/७४

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माड़ोका युद्ध। ६६

को गति बरणै तहँ योगिन कै शोभा कही बूत ना जाय ९४
लिहे वांसुड़ी सबसों आगे सनमुख गयो उदयसिंहराय॥
बयें हाथ सों कीन बन्दगी मन में ध्याय शारदामाय ९५
देखिके तुरतै राहुट द्वैगा जम्दै माड़ो का सरदार॥
सनमुख ठाढ़े त्यहि योगी को गरुई हांक दीन ललकार ९६
कउने गँवारे के चेला हौ योगिकिह्यो शत्रुका काम॥
जउने हाथ सों जपैं सुमिरनी जउने लेयँ रामको नाम ९७
करें बन्दगी हम त्यहि सों ना यह फिरि कह्यो बनाफरराय॥
सुनिकै बातैं बघऊदन की राजा मनै गयो शरमाय ९८
मता अनुपी नृप जम्बा की तहँ पर गई रहै तब आय॥
शोभालखिलखि सो योगिनकै मनमाँ बड़ी खुशी ह्वैजाय ९९
औ फिरि बोली यह योगिनसों तुम्हरो योग सिद्धि ह्वैजाय॥
चलिकै नाचो म्बरे महलन में योगेश्वरै कृष्णको ध्याय १००
सुनिकै बातैं ये रानी की महलन तुरत पहूँचे जाय॥
मलखे लीन्हे इकतारा को सय्यद खँझरी रहे बजाय १०१
बजै सरंगी भल देबा कै आल्हा डमरू रहे घुमाय॥
बजै बांसुरी बघऊदन के थिरकनलागलहुरवाभाय १०२
टप्पा ठुमरी भजन रेखता धुरपद बिहंगड़ो कल्यान॥
जयजयवन्ती औ तिल्लाना तोरैं राज़ल पर्ज पर तान १०३
भाव बतावै सब अँगुलिन सों यहु द्यावलि को राजकुमार॥
ता ता थे ई ता ता थे ई कबहूं निकरै शब्द अपार १०४
रानी कुशला की बाँदी तहँ देखै सबै काम बिसराय॥
एक पहरते दुइ लग बीते तीसरपहरुगयोनगच्याय १०५
बाँदी गमनी तब महलन को देखत रानी उठी रिसाय॥