पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१०३

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१०२ आवारागर्द शीघ्र पंजाब मे भी हिन्दी-ही-हिन्दी हो जायगी। यहां औरतों ने तो राष्ट्र-भाषा को बहुत कुछ अपना लिया है । सिर्फ विलायती सभ्यताप्रेमी मर्द लोगों मे ही अभी तक अँगरेजी का बोल-बाला है। शायद ये लोग अँगरेज़ी से राष्ट्र-भाषा का काम लेना चाहते हैं। इनकी ऑखे कब खुलेगी ?" शहर मे सुलोचना की ताज़ी फिल्म आई थी , यार लोगों ने उसकी भी चर्चा उठा दीं। एक मित्र लगे सुलोचना के नखशिखं की आलोचना करने । उस आलोचना में कुछ सौंदर्य-ज्ञान था, कुछ भावुकता, कवित्व और कुछ आवेश । यार लोग सुन रहे थे हँस रहे थे, फड़क रहे थे। वह मित्र सुलोचना का आपे से बाहर होकर नख-शिख-वर्णन कर रहे थे। एकाएक एक दूसरे मित्र से कहा-“उस्ताद । इस रूप की प्रदर्शिनी मे सुलोचना के जोड़ की कोई चीज़ टटोली जाय ।” एक जोर के ठहाके के साथ प्रस्ताव का जोरों से अनुमोदन और समर्थन 'हुआ । मडली सुलोचमा की एक प्रतिमूर्ति की तलाश में प्रदर्शिनी मे घूमने लगी। वे लोग प्रत्येक स्त्री को, युवती को, कुमारी को देखने-अपनी नज़रों मे तोलने लगे। एकाएक वसंतलाल चिल्ला उठे । जिसे देखकर वह चिल्लाए थे उसने चौककर उनकी ओर देखा-खें चार हुई और फिर झुक गई मित्रों ने पूछा-"क्या हुआ?" बसतलाल ने एक युवती की ओर संकेत किया। सचमुच वहाँ ५ साल पहले की सुलोचना खड़ी अपनी माधुरी बखेर रही थी। वही कद, वही रंग-रूप वही सुडोल शरीर, वहीं रसीली आँखे , वही मुस्किराते हुए होठ । युवती की अवस्था १६-२० वर्ष की थी। उसे देखकर मित्र मडली स्तभित रह गई ! ऐसा मनोहर रूप, रग, शरीर सदा देखने को नहीं मिलता। सुदरी किसी दूकान पर एक जारी-कोर की ..