पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 हेर फेर १०५ बढ़ते देर न लगेगी। मै विवाह रुपए से नहीं, तुमसे करना चाहती हूँ।" परन्तु यह सब व्यर्थ हुआ। बसंतलाल की बात स्वीकार नहीं की गई। हेमलता की माता का हठ था कि २५ हजार मूल्य की जायदाद मेरी लड़की के नाम जो कर देगा, उसी के साथ मै शादी कर सकती हूँ। यदि वसंतलाल हेमलता से विवाह करना चाहते हों, तो २५,०००) का एक मकान खरीद कर पहले उसके नाम लिख दे। जो मेरी कन्या को आलीशान मकान में नहीं रख सकता, वह उसे पाने के योग्य कदापि नही । वसतलाल अति मर्माहत होकर लाहौर से चले आए। चलती बार उन्होंने हेमलता से अंतिम भेंट की, उस में दोनों आंसुओं का ही विनिमय कर सके। (४) बारह बरस बाद। वसंतलाल अब हिदी-साहित्य-आकाश मे सूर्य की भांति देदीप्यमान थे। लाहौर में अखिल भारतवर्षीय हिन्दी-साहित्य सम्मेलन की धूम थी । बसतलाल सभापति बनकर आए थे। उनके रूप-रंग मे बहुत अन्तर हो गया था। अपनी लिखी पुस्तकों से उन्हें हजारों रुपए महीने की आय हो रही थी। कई प्रांतों-मे उनकी किताबे एम० ए० तक कोर्स में थीं। बड़े-बड़े राज-परिवारों मे उनकी प्रतिष्ठा थी। लाहौर-नगर मे उनका जुलूस बड़ी शान के साथ निकला। सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। आखिरी दिन उन्हें एक पुर्जा मिला । उसमे केवल इतना लिखा था-"पत्र-वाहक के साथ कुछ क्षणों के लिये आइए । अवश्य ।” वसतलाल ने पत्र-वाहक को देखा, एक वृद्ध नौकर था। पूछने