पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१०७

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१०६ -- आवारागर्द पर उसने बताया, बीबीजी ने बुलाया है। बीबीजी कौन हैं ? यह वह नहीं बता सका । उन्होंने इस कार्य के औचित्य परं कुछ-विचार किया, उन्हें कौतूहल हुआ, और अंत मे उन्होंने- वहाँ जाने का निर्णय किया। वह उसके साथ चल दिए। एक गली मे वह उन्हें ले गया। मकान में घुसकर उन्होंने देखा, मकान साधारण और पुराना है, किन्तु खूब साफ है। दालान मे दो कुर्सियाँ और एक मेज़ पड़ी थी मेज़ पे एक साफ कपड़ा बिछा था । भृत्य ने कुर्सी पर बैठने को कहा। बंसतलाल के बैठ जाने पर वह भीतर चला गया, और थोड़ी देर में कुछ फैल लाकर आगे धर दिए । मन न होने पर भी बंसतलाल ने फल खाए । वह समझ ही न सकते थे कि मामला क्या है। उन्होंने भृत्य से कहा-"मुझे जिन्होंने बुलाया है, वह कहाँ हैं ? मै अधिक ठहर नही सकता।" बूढ़े, ने.कहा-"वह क्षण-भर मे अभी आती हैं।" i क्षण भर में वह आई। वंसतलाल ने पहचान लिया। हेमलता हैं। वह उठ खड़े हुए। उन्होंने पूछा-"श्राप ? मैने यही सोचा था।" हेमलता ने शांत, स्वर मे कहा- 'वैठिए, आप प्रसन्ने तो हैं ?" 'वसतलाल ने देखा, वह दुबली, फीकी रोगी हो रही है। उसके रसीले नेत्रों का वह तेज, सदा हँसते हुए चेहरे की वह चमक सब मिट चुकी है। ऑखों के चारों ओर कालौस दौड़ रही है। वह रूप-लावण्य जाता रहा है उनका कलेजा हिल गया। हेमलता की बात उन्होंने सुनी नहीं। उन्होंने पूछा--"परन्तु आपको मै इस दशा में देखने की स्वप्न में भी कल्पना नहीं करता था!" हेमलता ने हँस कर कहा--"आप साहित्यक है अवश्य, कितु