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पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१०७

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आवारागर्द

पर उसने बताया, बीबीजी ने बुलाया हैं। बीबीजी कौन हैं? यह वह नही बता सका। उन्होंने इस कार्य के औचित्य पर कुछ विचार किया, उन्हें कौतूहल हुआ, और अंत में उन्होंने वहाँ जाने का निर्णय किया। वह उसके साथ चल दिए।

एक गली में वह उन्हें ले गया। मकान में घुसकर उन्होंने देखा, मकान साधारण और पुराना है, किन्तु खूब साफ हैं। दालान में दो कुर्सियों और एक मेज़ पड़ी थीं मेज़ पे एक साफ कपड़ा बिछा था। भृत्य ने कुर्सी पर बैठने को कहा। बंसतलाल के बैठ जाने पर वह भीतर चला गया, और थोड़ी देर में कुछ फिल लाकर धर दिए। मन न होने पर भी बंसतलाल ने फल खाए। वह समझ ही न सकते थे कि मामला क्या है।

उन्होंने भृत्य से कहा—"मुझे जिन्होंने बुलाया हैं, वह कहाँ हैं? मैं अधिक ठहर नही सकता।"

बूढ़े ने कहा—"वह क्षण-भर में अभी आती हैं।"

क्षण भर में वह आई। वंसतलाल ने पहचान लिया। हेमलता हैं। वह उठ खड़े हुए।

उन्होंने पूछा—"आप? मैंने यही सोचा था।"

हेमलता ने शांत, स्वर में कहा,—'वैठिए, आप प्रसन्न तो हैं?"

वसंतलाल ने देखा, वह दुबली, फीकी; रोगी हो रही हैं। उसके रसीले नेत्रों का वह तेज, सदा हँसते हुए चेहरे की वह चमक सब मिट चुकी हैं। आँखों के चारों ओर कालौस दौड़ रही हैं। वह रूप-लावण्य जाता रहा हैं।

उनका कलेजा हिल गया। हेमलता की बात उन्होंने सुनी नहीं। उन्होंने पूछा—"परन्तु आपको मैं इस दशा में देखने की स्वप्न में भी कल्पना नहीं करता था!"

हेमलता ने हँस कर कहा—"आप साहित्यक हैं अवश्य, किन्तु