सभी बातों की कल्पना-तो आप कर नहीं सकते। कवि की कल्पनाएँ तो काल्पनिक होती हैं। वस्तु-दर्शन तो दुखियों को ही होता है।"
बसन्तलाल उस हँसी को न देख सके, उनकी आँखे भर आईं हेमलता भी रोई।
बसंतलाल ने उसे अपने जीवन की व्यथा कहने को विवश किया। उन्होंने पूछा—"तुम्हारे पति कहां हैं?"
"जेल में। कुछ जाल करने के जुर्म में उन्हें ७ वर्ष की जेल हुई हैं। अभी २ वर्ष ही व्यतीत हुआ हैं।"
"मैंने सुना था, उनकी बहुत जायदाद थी, और वह बड़े आदमी थे। किसी स्टेट में सेक्रेटरी थे।"
अपनी जायदाद मेरे नाम लिखकर ही उन्होंने मुझसे व्याह करने में कामयाबी हासिल की थी, क्योकि माताजी की कमजोरी को उन्होंने ठीक समझ लिया था। पर पीछे मालूम हुआ कि जायदाद उनकी सब पहले ही रेहन थी, उन पर काफी कर्ज़ था। उनका वह हिबेनामा पीछे नाजायज ठहरा, सब जायदाद नीलाम हो गई। कुछ भी न वचा। उन्हें शराब पीने की अजहद आदत थी, और शराब के साथ जो दुर्गुण हो जाते हैं, वे भी उनमें आ गए थे। नौकरी जाती रही। मुझे माताजी से जो कुछ मिला था, वह भी खर्च हो गया।"
"माताजी कहाँ हैं?"
उनका तो स्वर्गवास हो गया।
बसंतलाल का कलेजा मुँह को आ रहा था। उन्होंने कहा—"क्षमा करना, मैं जानता चाहता हूँ कि आप की गुज़र कैसे होती हैं? रंग-ढंग से तो कुछ-कुछ समझ गया हूँ।"