हेर फेर १०७ ज सभी बातों की कल्पना- तो आप कर नहीं सकते। कवि की कल्पनाएँ तो काल्पनिक होती हैं। वस्तु-दर्शन तो दुखियों को ही होता है।" बसन्तलाल उस हँसी को न देख सके, उनकी ऑखे भर आई हेमलता भी रोई। बसतलाल ने उसे अपने जीवन की व्यथा कहने को विवश किया। उन्होंने पूछा-"तुम्हारे पति कहां हैं ?" "जेल मे। कुछ जाल करने के जुर्म मे उन्हें ७ वर्ष की जेल हुई है। अभी २॥ वर्प ही व्यतीत हुआ है।" "मैने सुना था, उनकी बहुत जायदाद थी, और वह बडे आदमी थे। किसी स्टेट मे सेक्रेटरी थे।" अपनी जायदाद मेरे नाम लिखकर ही उन्होंने मुझसे व्याह करने में कामयाबी हासिल की थी, क्योकि माताजी की कमजोरी को उन्होंने ठीक समझ लिया था। पर पीछे मालूम हुआ कि जायदाद उनकी सब पहले ही रेहन थी, उन पर काफी कर्ज था। उनका वह हिबेनामा पीछे नाजायज ठहरा, सब जायदाद नीलाम हो गई। कुछ भी न वचा । उन्हें शराब पीने की अजहद आदत थी, और शराब के साथ जो दुर्गुण हो जाते हैं, वे भी उनमे आ गए थे। नौकरी जाती रही। सुमे -माताजी से जो कुछ वह भी खर्च हो गया।" "माताजी कहाँ हैं" उनका तो स्वर्गवास हो गया। बसतलाल का कलेजा मुँह को आ रहा था। उन्होंने कहा- "क्षमा करना, मै जानता चाहता हूँ कि आप की गुज़र कैसे होती है ? रंग-ढंग से तो कुछ-कुछ समझ गया हूँ।" . मिला था,