पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/१२१

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श्रावारागर्द मोति पीछे-पीछे चल दिया। नगर के गली-बाजार-समाप्त गएरावी का किनारा आ गया। सामने रावी का गहरा ज उछलता हुआ जा रहा था। कनक ने पीछे फिरकर कहा-"हमारे पीछे क्यों लगे हो जाओ अपना रास्ता देखो।" बंसी ने सूखे कठ से सुहागी की ओर देखकर कहा- 'व कहे, तो लौट जाऊँ" "वह कहे, तो रावी म कूद पडोगे ?" "वह कहे, तो हठात् सुहागी की ज़बान खुली, उसने कहा--"कूद पडो।' उसी क्षण बसी अगम जल में था, और दूसरे क्षण सुहागी दोनों प्रम-जल-समाधि मे लान थे। पंजाब की युवतियाँ रावी के तट पर जब जाती हैं, . प्रेमियों के गीत गाती हैं। कदाचित दोनों की आत्माये जल- से उन्हें सुन-सुनकर प्रसन्न होती हैं। >7