पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/२१

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२० आवारागर्द "कहता तो हूँ,तुम सब गधे हो। तुम होते तो यही करते और चांद पिटाते मैंने तिकड़म से काम लिया, तिकड़म से" "भई वाह,जरा हम सुने वह तिकड़म"सब दोस्त हँसी रोक कर बैठ गए रामनाथ ने एक कश सिगरेट का खीचा और कहा"यह तो मै कह ही चुका हूँ कि वह बड़ी ही खूबसूरत थी,उम्र १६,१७ साल की थी। वह वास्तव में मेरे दोस्त की साली थी और अभी क्वॉरी थी। एक दोस्त बीच ही मे चिल्ला उठे,वोले “अरे यार,यह कहो,थी ही या अभी है। है तो फिर दोस्त के वन जाओ साढू और यारों को चलने दो बारात में। लो दोस्तो, होनी आप को भी औरंगाबाद खींचने वाली है।" सब दोस्तों ने उसे रोक कर कहा "चुप रहो भाई! बकवाद न करो। जरा सुनने तो दो। हाँ जी, उस तिकड़म की बात कहो अब।" "वही तो कह रहा हू। उस वक्त तो मै जिगर पर तीर खाकर चला आया। घर आकर मैने घर वाली का ग़ाजियाबाद रहने का बन्दोवस्त कर दिया। पूछा तो कह दिया कि दिल्ली की आबो-हवा खराब है। मकानों के किराये ज्यादा हैं, चीजे मॅहगी हैं। नौकरों की किल्लत है', उनग़रज़ हर तरह उसका दिल रख दिया। मगर दिल्ली भी मकान कायम रखा। दफ्तर से छुट्टी पाकर गाजियाबाद चला आता । कभी-कभी दिल्ली रह जाता। दिल्ली मे पड़ोसियों और दोस्तों से कह दिया कि घर वाली बहुत बीमार है। परेशान हू।डाक्टरों ने आबो-हवा बदलने को कहा है। कुछ दिन यह धन्धा चला। और एक दिन वह मर गई। "मित्रगण एकदम चौक पड़े "क्या मर गई ? मगर बीमारी तो महज़ बहाना ही था; फिर..