चने चबाने को दिये। इसके बाद उसने मुट्ठी भर बताशे दिलीप के मुख मे भर दिये और वह खिलखिला कर हँस पड़ी।
दिलीप न हँस सके। उन्होंने उमड़ते हुए आँसुओं के वेग को रोककर फिर झुककर रजनी के पैर छुए। इसके बाद मनीबेग निकाल कर थाल मे डाल दिया।
राजेन्द्र ने कहा "अरे दिलीप, तुम रजनी की इस ठगविद्या में आगये। मुझे भी यह इसी तरह ठगा करती है।"
दिलीप ने कहा "बकवाद मत करो, चुपचाप टिकिट और ताँगे के पैसे निकालो।"
इसी बीच दुलरिया ने जल से भरा लोटा आगे बढ़ाकर कहा "भैया, सवा रुपया इसमे भी तो डालो।"
क्षण भर दिलीप सकपका गए। उन्होंने अपनी अँगूठी उतार जलपात्र में डाल दी। दुलरिया ने मृदुमन्द मुस्कान होठों पर बखेर कर कहा—"हम का लेचलो भैया, दुलहिन की सेवा करेगी।
दिलीप कुछ जवाब न देकर झपट कर भागे और राजेन्द्र का हाथ पकड़ कर तांगे में जा बैठे।
दुलारी ने एक बार हँसती आँखो से रजनी को देखा, वह रो रही थी।