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पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/७९

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आवारागर्द


सर फ़ाज़ल-भाई ने तैस मे आकर वादा भी लिख दिया और वह शेर भी। मिस्टर वेदवार ने एक सरसरी नज़र उस पर डाली, मुस्कराये, पाँकेट बुक जेब मे डाल कर कहा—"बहुत अच्छा, छः महीने मे आपको तस्वीर मिलेगी।'

'बहुत अच्छा, मै कयामत तक इन्ज़ार करूंगा।'

सब लोग हँस पड़े, सिर्फ मि° वेदद्वार नहीं हँसे। सभी मित्र चाय-पान खतम कर बिदा हुए।

[२]

वह शेर औरङ्गजेब की बेटी ज़ेबुन्निसाँ का एक प्रसिद्ध फ़ारसी शेर था। वह शेर फ़व्वारे के उछलते हुये जल को लक्ष्य कर पढ़ा गया था। उसका अभिप्राय यह था,—

'तेरी भौहों में बल पड़े हुये हैं, तू गुस्से से ताव-पेच खाकर ऊपर उठता है, और पत्थर पर सिर दे दे मारता है, तेरे दिल में ऐसा क्या दर्द है, तेरी प्रकृति ठण्डी हैं और स्वभाव शान्त।'

इस शेर की तस्वीर खींचने के इरादे से मिस्टर वेदवार ने बम्बई से पञ्जाब और काश्मीर तक की यात्रा करने की ठानी। वे दिल्ली-पञ्जाब घूमते हुये काश्मीर पहुंचे। शालीमार बाग़ में अंब वे चक्कर काटने और वही शेर गुन-गुनाने लगे। सामने सङ्गमर्मर के फ़व्वारे चल रहे थे। स्वच्छ सङ्ग-मर्मर की चौकियों पड़ी थीं। चांदनी रात थी। एक चौकी पर एक फ़व्वारे के सामने बैठ कर वे सोचने लगे—ऐसी ही सुहावनी चाँदनी रात होगी, ऐसी ही ठण्डी हवा चल रही होगी, ऐसा ही यह फ़व्वारा जल बखेर रहा होगा—देखो तो फ़व्वारे का पानी कैसा ताव-पेच खाकर ऊपर उछल रहा हैं, कैसे इसके माथे में बल पड़े हुये हैं। और किस तरह यह पत्थर पर सर पटक रहा हैं। अपने प्यारे के वियोग में जलती-भुनती भग्रहृदया जो ज़ेबुन्निसाँ ने यहीं, इसी पटिया पर