पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/८१

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आवारागर्द भला कहाँ छोड़ने वाले थे, जब बड़ी-बड़ी सिफारिशें और परिचय- पत्र उन तक पहुंचे। और मिस्टर वेदवार की आयु, सौजन्य सनक और उद्देश उन्हें मालूम होगया तो वे उनके दोस्त हो गये और इस शर्त पर राजी हो गये कि फोटो हमारे ही सामने खींचा जायगा। जब जज साहब राजी हो गये तव मिस्टर वेदवार ने यह पख लगाई कि फोटो यहां नही, शालामार वारा मे खींचा जायगा। जज साहब किसी तरह राजी न होते थे, पर अन्त मे जब सब खर्च का भार मिस्टर वेदवार ने लिया तो राजी हो गये। एक महीने की छुट्टी ली , और पूरी पार्टी काश्मीर जा पहुंची। ज़ बुन्निसों के उपयुक्त पोशाक और जेवर तैयार कराने, मे, लड़की के मस्तिष्क मे, वही भाव भरने में मिस्टर वेदवार को कई दिन लग गये। रुपया भी बहुत खर्च हो गया । परन्तु इसकी उन्हें परवाह न थी, किसी भांति तस्वीर खिच जाय। जज साहब को भी अब उनकी सनक मे मजा आने लगा था। और लड़की भी रस लेने लगी थी। इससे मिस्टर वेदवार की कठिनाइयां कुछ हल्की हो गई थी सब तैयारी कर चुकने पर अन्त मे एक दिन फोटो खींचने का इरादा पक्का कर सब लोग शालामार बाग़ पहुँचे। जज साहब ने देखा, काफी रुपया खर्च करके वेदवार ने वहां आवश्यक परिवर्तन किये हैं। ऐसा मालूम होता था, शाहजादी ज़ बुन्निसां, इसी बाग़ मे आजकल रह रही हैं। परन्तु जब फोटो लेने का समय आया और सब तैयारियां होगई तो फोकस लेने के बाद मिस्टर वेदवार ने उदास होकर कहा-'अफसोस है, आज फोटो नहीं खिच सकता।'