पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/८२

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तस्वीर जज साहब बौखला उठे। उनकी छुट्टियों के बहुतू कर्म दिन रह गये थे। बोले-'अब क्या हुआ ?' मिस्टर वेदवार ने समझाया। फोटो उस समय लिया जायगा जब सूरज के नीचे एक वादल का टुकड़ा होगा। हमे यहां रोज़ आना होगा, उसकी प्रतीक्षा करनी होगी । बिना ऐसा हुए चांदनी रात का राइट-शेड चित्र मे नही आ सकता, और कृत्रिम बन्दो- बस्त भी नहीं किया जा सकता। जज साहब बहुत चीखे-चिल्लाये । पर मिस्टर वेदवार की बेबसी, विनय और इतने दिन की मुरव्वत ने आरिखर उन्हें पिघला दिया। वे मिस्टर वेदवार के पीछे खूब ही नाचे और अन्त मे एक दिन ठीक फोटो खिच गया। फोटो देख कर मिस्टर वेदवार आनन्द से विह्वल हो गये। वे दौड़े दौडे गये और जज साहब के गले से लिपट गये। चित्र क्या था मानो स्वयं शाहजादी जेबुन्निसां चाँदनी रात मे अपने उदास और एकाकी जीवन के लिए फव्वारे के सामने बैठी उसके प्रति संवेदना प्रकट कर रही हैं। और वह शेर जैसे अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा है। (३) बम्बई पहुंच कर चित्र मित्र-मण्डली के सामने सर फाज़ल-भाई को दिया गया। बम्बई के सब कलाकार बुलाये गये। सबने मुक्त- कण्ठ से चित्र की प्रसंसा की। जब सर फाजल-भाई ने उसका मूल्य पूछा तो मिस्टर वेदवार एक ठण्डी सांस लेकर बोले--'वादा कर चुका हूं, इसलिए देना पड़ा। इस चित्र का कोई मूल्य नहीं है। छत्तीस हजार रुपया मेरा जो इसके बनाने से खर्च हुआ है, दे दीजिये।