पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/९०

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तेरह बरस बाद 52 "ओह, वह नन्ही-सी नटखट लड़की तुम हो अमला ! तब तो तुम बहुत ही हँसती थीं। उन्होंने अमला के दोनो हाथ पकड़कर पास खींच लिया।" अमला अचरज-भरी दृष्टि से देखने लगी। उदय ने कहा- "उन अच्छे आदमी को तुमने कभी याद नहीं किया अमला ?" अमला कुछ-कुछ समझ गई थी। यह ऑखे फाड़-फाड़कर पति की आँखों में छिपी उस विस्मृत, चिर-परिचित दृष्टि को पहचानने की चेष्टा कर रही थी। उसने प्रकंपित स्वर मे कहा-"तो क्या सचमुच.. "अमला, तुमने तो तब हॅढ़ लिया मैं सोचता रहता था कि वह वालिका भी अब बड़ी हो गई होगी, अपने घर-बार की होगी। सो तुम बड़ी हो गई। अपने घर-बार की हो गई। तुम्हारे खेलने की यह सजीव गुड़िया तुम्हें मिल गई, सो तुमने अपनी बचपन की गुड़िया इसे दे डाली।" दोनो चुपचाप कुछ देर अवसन्न खड़े रहे। तेरह बरस पूर्व की विस्मृत-सी बातें वे खूब ध्यान से याद कर रहे थे। उदय सोच रहे थे, कैसी विचित्र बात है कि जिस बालिका को मैने घुटनों पर खिलाया, वही अव मेरी अर्धाङ्गिनी और जीवनसंगिनी है। अमला सोच रही थी, वाह ! यह तो खूब रही । जब मै नन्ही-सी बच्ची थी, तब यह इतने बड़े थे, अब मैं इनके बराबर हो गई। समय और परिस्थिति ने क्या घटना उपस्थित कर दी। दोनो सोचने लगे। दोनो की दृष्टि उस वालिका पर पड़ी, जो पालने अँगूठा चूस रही थी। एक बार दोनो ने एक दूसरे को देखा, और फिर हँस दिए।