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पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/९३

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आवारागर्द

के पोत का बच निकलना संभव न था। समुद्र में मानों आग लग रही थी। योरोप ने महामद्य पिया था, वह मतवाले की भांति अपना ही रक्त पी रहा था। सुदूर पूर्व की मुर्दार और निस्तेज जातियां भय, शंका और चिन्ता से भरी हुई मत्त योरोप का यह रंण-तांडव देख रहीं थी।

व्यापार ही इस युद्ध का प्रारण हैं, व्यापार ही इसका मूल कारण हैं, यह जापान समझ गया था। वह छोटी-सी पीली जाति, पौनिया नाग की भांति लहरा लहरा कर इस सुयोग से लाभ उठा कर अपने उन्मुक्त व्यापार के लिये विश्वब्यापी द्वार का उद्घाटन कर रही थी। महान रण-पंडित और कट्टर राजनीतिज्ञ लायड जार्ज—जो उस समय मित्र-राष्ट्रों के भाग्य विधाता थे, जापान को अपना परम मित्र घोषित कर रहे थे। वह समझ गये थे, इसी मित्र की बदौलत इस कठिन समय में, एशिया मे ब्रिटिश तलवार का आतंक कायम रक्खा जा सकता हैं।

(२)

राजधानी टोकियो मे लाखों मनुष्य पागल कुत्ते की भांति दिन भर और आधी रात तक दौड़ते रहते थे। साधारण कुली से बड़े-बड़े व्यापारियों तक की यह हालत थी। लोगों को घरों पर जाकर खाने की फुरसत न थी। रुपये का मेह बरस रहा था, किसी चीज़ की मानो कोई दर ही न थी। मिट्टी सोने के मोल बिक रही थी। उस समय जापान सिर्फ एक दूकान थी। और सारा संसार इसका खरीदार था। भोजन के समय होटलों में भीड़ देखने योग्य होती, पर प्रबन्ध और व्यवस्था भी देखने योग्य थी। सभी की सभी इच्छाएं पूर्ण होतीं थीं।

जापान में रहते मुझे बीस वर्ष हो गये थे। जापान की नस-नस से वाकिफ था। मेरे जीवन का मुख्य भाग जापान में