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पृष्ठ:इंशा अल्लाह खान - रानी केतकी की कहानी.pdf/१४

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रानी केतकी की कहानी

सताया करें।" जोगी महेंदर गिर ने यह सुनकर कहा—"तुम हमारे बेटा बेटी हो, अनंदे करो, दनदनाओ, सुख चैन से रहो। अब। वह कौन है जो तुम्हें आँख भरकर और ढब से देख सके। वह बघंबर और यह भभूत हमने तुमको दिया। जो कुछ ऐसी गाढ़ पड़े तो इसमें से एक रौंगटा तोड़ आग में फूंक दीजियो। वह रोंगटा फुकने न पावेगा जो बात की बात में हम आ पहुँचेगे। रहा भभूत, सो इसलिये हैं जो कोई इसे अंजन करै, वह सबको देखे और उसे कोई न देखै, जो चाहै सो करै।"

लाना गुरूजी का राजा के घर

गुरु महेंदर गिर के पाँव पूजे और धनधन महाराज कहे। उनसे तो कुछ छिपाव न था। महाराज जगतपरकास उनको मुद्दल करते हुए अपनी रानियों के पास ले गए। सोने रूपे के फूल गोद भर-भर सबने निछाबर किए और माथे रगड़े। उन्होंने सबकी पोठें ठोंकी रानी केतकी ने भी गुरूजी को दंडवत की; पर जी में । बहुत सी गुरूजी को गालियाँ दीं। गुरूजी सात दिन सात रात यहाँ रह कर जगतपरकास को सिंघासन पर बैठाकर अपने बघंबर पर बैठ उसी डौल से कैलास पर आ धमके और राजा जगतपरकास अपने अगले ढब से राज करने लगा।

रानी केतकी का मदनवान के आगे रोना और पिछली बातों का ध्यान कर जान से हाथ धोना।

दोहरा

(अपनी बोली की धुन में)

रानी को बहुत सी बेकली थी।
कब सूझती कुछ बुरी भली थी॥