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इतिहास तिमिरनाशक


जाता। कभी वह उसी को अपने कबजे में ले आता या दूसरे का किला शहर और गांव जा दबाता। कभी एककी फौजदेख-कर या उस की आवाज सुन कर या रसद चुक जाने पर दूसरे की फौज आपसे आप हट जाती। कभी थोड़ी होने परभी जी खोल कर ऐसी लड़ती कि या तो फ़तह पाती या उसी जगह कट जाती।अ सन् १७८५ में पहली जुलाई को कड़ालूर कीराह में आठ हज़ार अंगरेज़ी फौज ने अस्सी हजार दुश्मन कीफौज को ऐसी शिकस्त दी कि उस के दस हज़ार आदमीखेत रहे। इन के घायल मिला कर भी तीन सो आदमी काम न आये सत्ताईसवीं सितम्बर की लड़ाई में हैदरअली ने अपना तोप- खाना बचाने को जान बूझ कर अपने पांचहज़ारसवार कटवा दिये। गोया किसी खेत की मूली थे।

दिसम्बर में अस्सी बरस के ऊपर पहुंच कर हैदरअलीइस दुनिया से उठगया। और उस का बेटा टीपू उसकी जगह १०८४ ई० मसनद पर बैठा। टीपू के मानी उस मुलक को जुबानमेंशेर से लड़ाई कुछ दिन और भी हुओं की। लेकिनग्यारहवी मई को सुलह हो गयी। जिस ने जिस का जो कुछलियाथा उसे वापस दे दिया। आगे के लिये अहदनामा लिख गया।

इस अर्सि में फरासीस और इंगलिस्तान के दर्मियान भी सुलह हो गयी थी। कहीं कुछ लड़ाई बाकी नहीं थी।

सन् १७७५ से यानी जब से आसिफुद्दौला ने बनारस का इलाका कम्पनी को दे दिया। राजा चेत सिंह बनारस काराजा सार कम्पनी अंगरेज़ बहादुर के ताबे हुआ। यह राजा बल- वंतसिंह का बेटा था। पर व्याही हुई रानीसे न था। अंगरेजों ने बाईस लाख रूपया साल खराज मुकर्रर कर के उस इलाके की बहाली का अहदनामा राजा चेतसिंह के नामलिख दिया। सन् १७७८ तक राजा चेतसिंह ने बराबर वह रुपया अदा किया। वारन हेस्टिंगज़ के दिलमें राजा चेतसिंह की तरफ से रंजाआ गया था। और उस का सबब यह था कि जिन दिनों में वारन हेस्टिंगज़ को कौंसल के कई मिम्बरों ने यहां से निकालना