लार्ड साहिब के साम्हने लेंजाऊंगा राजा ने पैर फैला दिया कि भाई ला रस्सी ओर बांध देर क्यों करता है। राजाके चचेरे
भाई बाबू मनियारसिंह के मुंँह से यह निकल गया कि किस
का मक्टूर हे जो राजाके पैर में रस्सी बांधे चेतराम बोलाकि
चेतसिंह और चेतराम की गुफ्तगूमें दूसरा कोनमसखा दखल
देताहे। मनियारसिंह होंठ काट करं चुप होरहा जब बाहर
बलवा हुआ। चेतराम अपनी मौत से अचेत उछल कर राजा
से जा लिपटा और तिलंगों को पुकारा। अब तिलंगे तलवार
ले कर राजा की तरफ दोड़े। राजा के साथियों ने झटपहरसे,
में अपने हथियार उठालिये। बाबमनियारसिंह के बेटे ननः
कूसिंह ने एक ही तलवार मैं चेतराम को काम तमाम किया
भीतर भी लड़ाई शुरूहोगयी तिलंगों के पास कारतूस नथा सब
केसबमारेगये अगर राजा मनियारसिंह की सलाह मानता और
अपनी सिपाह समेत ठस बक्त माधोदास के बाग़ में जहां
हेस्टिंग्ज का देरा था और बे फोज वह अकेला रह गया था
जा कर उसे अपने काबू में कर लेता और फिर मिन्नत समाजत
से पेश आता। अपनी दिली मुराद को पातालेकिन राजाने
सदानंद बख़शीकी सलाह पसंदकी ओर खिड़को की राह पग-
ड़ियों के वसीले से उतर किश्ती पर सवार हो गंगा पार राम-
नगर चला गया। और फिर वहाँ से कुछ दिन अपने किलों में
ठहर कर जब सर्कार की हर तरफ़ फ़तह और अपने सिपा.
हियों को शिकस्त सुनी ग्वालियर को भाग गया। हेस्टिंग्ज
ने बलवंतसिंह के नवासे रामा महीपनरायनसिंह को बनारस
के राजपर बिठाया। गोया हक हकदार कोपहुंचाया। लेकिन
बेचारे चेतसिंह के निकालने से जैसा बिचारा था। वेसापुछ
खज़ाना हाथ न लगा। कहतेहैं कि राजा चेतसिंहका दीवान,
बाबू ओसानसिंह अपने मालिक से बिगड़ कर हेस्टिंग्ज से
जा मिला था। ओर उसी ने उसके कान भरे थे कि राजा
के पास करोड़ों रुपये का ख़ज़ाना हे ज़रा सी धमकी में देदेगा।
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