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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/१०६

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इन्दिरा।

रमण कुमुदिनी।

उपेन्द्र―उस का घर कहां है?

रमण―सो इस समय नहीं बता सकते।

उपेन्द्र―वह विधवा है सधवा?

रमण―सधवा।

उपेन्द्र―उस के पति को आप जानते हैं?

रमण―हां, अच्छी तरह।

उपेन्द्र―वह कौन है?

रमण―यह बतलाने का मुझे अभी अधिकार नहीं है।

उपेन्द्र―क्यों? क्या इसमें कोई गुप्त रहस्य तो नहीं है?

उपेन्द्र―आप ने कुमुदिनी को कहां से पाया?

रमण―मेरी स्त्री अपनी मौसी के यहां से उसे ले आई थी।

उपेन्द्र―नहीं, ये सब फधजूलबाते हैं। अच्छा! कुमुदिनी का चरित्र कैसा है?

रमण―बहुतही निर्मल। यदि उस में कोई दोष था तो यही क वह मेरी बूढ़ी मिसराइन को बहुत ही चिढ़ाती थी। इसके प्रसावे ओर तो कोई दोष उस में नहीं पाये गये।

उपेन्द्र―किन्तु मैं औरतों को चालचलन के बारे में पूछ रहा हूं कि उस की चालचलन कैसी है?

रमण―कुमुदिनी सरीखी नेक चाल चलनवाली स्त्री कम देखी जाती हैं।

उपेन्द्र―उस का घर कहां है? ऐं! बतलाते क्यों नहीं?