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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/४९

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आठवां परिच्छेद।

फिर उन्हों ने सुभाषिणी को बुला कर कहा,―“रानी! देखो, इसे कोई कड़ी बात न कहने पावे―और तुम तो कभी कहोहीगी नहीं, क्योंकि तुम वैसे आदमी को बेटी नहीं हो।”

सुभाषिणी का बालक वहीं बैठा था, सो बोल उठा,―

मैं कली बात कउंगा।”

मैंने कहा―“कहो तो सही।”

उस ने कहा―गाली छाली (साली), और क्या मा?

सुभाषिणी ने कहा―और तेरी सास।

बच्चा बोला―क आं (कहां) छा छ?

तब सुभाषिणी को लड़की ने मुझे दिखला कर कहा,―“यही तेरी सास है।”

तब बच्चा कहने लगा―“कुनुडिनी (कुमुदिनी) छाछ! कुनुडिनी छाछ!”

सुभाषिणी मेरे साथ एक नाता लगाने के लिये छटपटा रही थी, सो अपने बेटे बेटियों के मुख से ऐसी बात सुन कर मुझ से बोली―

“ता आज से तुम मेरी समधिन हुई।”

फिर वह खाने बैठी, और मैं भी उस के पास खिलाने बैठी। खाते खाते उस ने दिल्लगी से पूछा,―

“क्यों समधिन! तुम्हारे कै ब्याह हुए है?”

मैं उस का चीज़ समझ, बोली,―“क्यो। यह रसोई क्या द्रौपदी की सी बनी है?”