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इन्दिरा

कर पके बाल न उखाड़ने पड़ें। महीने के रुपये जो मैंने पाये थे उसमें से एक रुपया हारानी को दिया और कहा कि “इसका एक शीशी ख़िजाब किसी से मोल मंगवा दे।” सुनतेही निगोड़ी हारानी हंसी के मारे लोटने लगी। और हंस कर बोली,―“ख़िजाब लेकर क्या करोगी? किसकें बालों में लगाओगी?”

मैं―मिसराइन जी के।

इस बार तो हारानी हंसते हंसते लोटने लगी। ठीक उसी समय मिसराइन वहा आ पड़ी। तब वह हंसी रोकने के लिये मुंह में कपड़े ठूंसने लगी। पर जब किसी प्रकार हंसी नहीं रुक सकी तब वहां से भाग चली। मिसराइन ने कहा,―“वह इतनी हंस क्यों रही है?”

मैंने कहा―“उसे और तो कोई काम हई नहीं, अभी मैं ने कहा था कि मिसराइन जी के बालों में ख़िजाब लगा दूं तो कैसी हो? बस इसी बात पर इतनी फूट रही है।”

मिसाइन―तो इतनी हंसी किस लिये? उसके लगाने से हानि क्या है? सन की अंटिया सन की अंटिया कह कर लड़के पागल किये डालते हैं, सो उस आफ़त से तो बचूंगी?

यह सुन सुभाषिणी की लड़की हेमा ने तुरत कविता पढ़ना प्रारंभ किया―

चले बूढ़ी सन की अंटिया,
जूड़े में खोंसे फूल।
हाथ में लाठी गले में फांसी,
कान जोड़ा कनफूल