पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/५५

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नवां परिच्छेद।

हेमा के भाई ने कहा,―“कल बूल!” तब किसी के ऊपर जोलाहे की कल (करमा) पडधने की आशंका से सुभाषिणी उसे खींच कर ले गई।

मैंने समझ लिया कि मिसराइन को खिज़ाब लगाने को बड़ा लालसा है। मैं ने कहा,―

“अच्छा, मैं खिज़ाब लागा दूंगी।”

मिसराइन ने कहा,―“अच्छा, सोई करना। तुम जीती रहो, तुम्हारे सोने के गहनें हो, तुम खूब रांधना सीखो।”

हारानी केवल हंसनेवाली ही न थी, वरन बड़े काम की औरत थी, उस ने शीघ्र ही एक शीशी खिज़ाब ला दिया। मैं उसे हाथ में ले कर मालकिनी के पके बाल उखाड़ने गई। उन्होंने पूछा,―“हाथ में क्या है?”

मैंने कहा,―“एक अरक है। इस को बालों में लगाने से सब पके बाल गिर जाते हैं और काले रह जाते हैं।"

मालकिनी ने कहा,―“भला ऐसे अचरजवाहे अरक का हाल तो कभी नहीं सुना। अच्छा, लगाओ तो देखू। देखना, खिज़ाब मत लगा देना।

मैं ने अच्छी तरह से उन के बालों में खिज़ाब लगा दिया। और लगा कर “पके बाल अब नहीं रहे" यह कह कर वहां से मैं चली आई। नियमित समय के बीत जाने पर उन के सारे बाल काले हो गये। दुर्भाग्यवश झाडू देती देती हारानी ने यह देख लिया, तब व झाड़ फैक, मुंह में कपड़े ठूसती हुई सदर फाटक को ओर भागी! वहां पर, “क्या हुआ दाई! क्या हुआ