पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
इन्दिरा।

दाई!” इसी का एक हल्ला मचा; जब वह फिर घर के अन्दर भाग कर मुंह में कपड़े ठूंसती ठूंसती छत के ऊपर चढ़ गई। वहां पर सोना की मर बाल सुखा रही थी उसने पूछा,―“क्या हुआ है, जी!” पर हंसी के वेग से हारानी बोल न सकी, सेवक हाथ इशारे से माथा दिखलाने लगो। सोना की माने जब कुछ न समझा तो नीचे आकर देखा कि मालकिनी के माथे के सारे बाल काले हो गये हैं, यह देश वह पुक्का फाट कर रो उठी और बोली, "अरे, माई, रे, माई! यह क्या हुआ जी! तुम्हारे सिर के सब बाल काले हो गये! अरे दैया! न जानू किस ने क्या लगा दिया!”

इतने ही में सुभाषिणीं नें आकर मुझे पकड़ा और हंसते हंसते कहा, ―“मुंहझौसी! यह क्या किया? मा जी के बालो मे खिज़ाब लगा दिया?”

सुभाषिणी―तेरे मुह में आग लगे, अब देख कि कैसा उत्यात होता है।

मैं―तुम निश्चिन्त रहो।

इतने ही में मालकिनी ने खुद मुझे बुलाया और कहा,―

“एजी! कुमुदिनी। तुम ने क्या मुझे खिज़ाब लगा दिया?”

मैंने देखा कि उसका मुखड़ा प्रसन्न हैं: फिर कहा,―

"ऐसी बात किस ने कही, मा!”

मालकिनी―यही सोना की मा तो कहती है।