तथा प्रमाणित करती है कि न्याय-युक्तता से सम्बन्ध रखने वाली बातें अधिक मान्य हैं।
मनुष्य जाति के सुख के लिये आचार-विषयक वे नियम*--जो मनुष्यों को आपस में एक दूसरे को हानि पहुंचाने से रोकते हैं--उन उसूलों से, जो मानुषिक कार्यों के किसी विशेष विभाग का प्रबंध करने का सबसे अच्छा तरीक़ा बताते हैं, अधिक आवश्यक है। इन नियमों में यह भी विशेषता है कि मनुष्य जाति की सारी सामाजिक भावनाओं का निर्णय मुख्यतया इन्हींके अनुसार होता है। इन नियमों का पालन करने से ही मनुष्यों में शांति रहती है। यदि इन नियमों का पालन करना नियम तथा इन का उल्लंघन करना अपवाद न हो तो प्रत्येक मनुष्य दुसरे मनुष्य को दुश्मन समझने लगे और सदैव उससे अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करता रहे। मनुष्य जाति इन नियमों का एक दूसरे से पालन कराने का अधिक प्रयत्न करती है क्योंकि ऐसा करना आवश्यक समझती हैं। दूर-दर्शिता के विचार से प्रत्येक मनुष्य को उपदेश या प्रोत्साहन देने से मनुष्यों को लाभ हो सकता है या वे ऐसा भी सोच सकते हैं कि ऐसा करने से कुछ लाभ नहीं होता है। प्रत्येक मनुष्य को यह निश्चय करादेना कि परोपकार करना उसका कर्तव्य है निस्सन्देह समाज के लिये हितकर है, किन्तु बहुत अधिक नहीं। ऐसा होना तो सम्भव है कि किसी मनुष्य को इस बात की आवश्यकता न पड़े कि दूसरे उसका उपकार करे, किंतु प्रत्येक मनुष्य को सदैव
- इन नियमों में हमको उन नियमों को सम्मिलित करना नहीं भूलना चाहिये जो एक दूसरे की स्वतन्त्रता में बाधा डालने से रोकते हैं।