पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/६५

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दूसरा अध्याय


अभी मनुष्य जाति को इस सम्बन्ध में बहुत कुछ सीखना है कि हमारे कामों का सामाजिक सुख पर क्या प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक प्रक्रियात्मक कला के समान उपयोगितावाद के उपसिद्धान्तों में अभी बहुत कुछ सुधार हो सकता है और ज्यूँ २ मनुष्य उन्नति करता जारहा है बराबर सुधार हो रहा है। किन्तु प्राचार शास्त्र के नियमों में सुधार के लिये स्थान मानना और बात है तथा पिछले अनुभव को बिल्कुल विस्मरण कर देना तथा प्रत्येक व्यक्तिगत कार्य को मूल सिद्धान्त की कसौटी पर कसना दूसरी बात है। किसी बटोही को उसके निर्दिष्ट स्थान की सूचना देने के यह माने नहीं हैं कि उस को मार्ग में पड़ने वाले दूरी तथा स्थान सुचक खम्भों से सहायता लेने के लिये निषेध कर दिया है। प्रसन्नता आचार शास्त्र का अन्तिम लक्ष्य तथा उद्देश्य है इस सिद्धान्त को उपस्थित करने के यह अर्थ नहीं हैं कि उस लक्ष्य पर पहुंचने के लिये कोई मार्ग निर्धारित नहीं करना चाहिये तथा उस लक्ष्य की ओर जाने वाले मनुष्यों को यह न बताया जाय कि अमुक दशा के स्थान में अमुक दशा से जाना उचित है। इस विषय पर लोगों को ऊपपटांग बातें कहना या सुनना नहीं चाहिये। कोई आदमी यह नहीं कहता कि मल्लाह लोग नाविक पञ्चाङ्ग (Nautical Alamanak) की गणना करने के लिये नहीं ठहर सकते, इस कारण सामुद्रिक विद्या का प्राधार गणित ज्योतिष (Astronomy) नहीं है। विवेकशील प्राणी होने के कारण मल्लाह लोग पहिले ही से सामुद्रिक पञ्चाङ्ग की गणना करके समुद्र पर जाते हैं। सारे विवेकशील प्राणी ठीक या बे ठीक सम्बन्धी साधारण प्रश्नों पर अपने विचार निश्चित करके जीवनरूपी समुद्र में उतरते हैं। जब तक दूरदर्शिता प्रशंसनीय मानी जाती रहेगी,