सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:उपहार.djvu/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०


और भी असतुष्ट हो जाती है। उनका स्वभाव भी उसे तनिक नहीं सुहाता। वास्तव में, यहाँ का वातावरण ही उसे अपनी प्रकृति के प्रतिकूल प्रतीत होता है। अपने बाल सखा कुन्दन की स्मृति भी उसे पग-पग पर विचलित करती रहती है। हीना के लिए व्याकुल कुन्दन भी एक दिन उसकी ससुराल में जा पहुंचता है। और गुप्त रूप में हीना के बगीचे में ही माली का काम करने लगता है। परन्तु हीना को उससे मिलने जुलने की स्वतन्त्रता नहीं दी जाती। यहाँ माली का काम करते-करते सुकुमार कुन्दन का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन विगडता जाता है। हीना यह जान कर भी उसकी सहायता नहीं कर सकती। उसके पतिदेव उसे कुन्दन के पास जाने की और उससे बातचीत करने की स्वतन्त्रता नहीं देते। यह विवश है। अन्त में एक दिन कुदन के प्राण पखेरु उर जाते हैं। कुन्दन का यह आत्मसमर्पण हीना के जीवन को चिर विषादमय पना जाता है।

इस प्रकार इस कहानी में हमारे यहाँ के विवाह की अन्ध प्रथा का कुपरिणाम दर्शित है। इसकी तह में जो तर्कगमित है वह प्रेम का यह सिद्धान्त कि प्रेम स्त्रप्रसूत, स्वभू है। पिता को इच्छा और आज्ञा होने पर भी होना इंजीनियर साह्य को प्रेम नहीं कर सकती। साथ ही इसमें विवाहिता स्त्रीयों की असमर्थता और विवशता का भी करुण चित्रण है। हीना के मुँह से निकले हुए दो-चार वाक्य मुझे सुरुचि के प्रतिकूल लगे।

असमनस––कहानी की नायिका कुसुम के हीशब्दों में "क्या प्रेम का अन्त कहानियों की तरह विवाह में ही होना आरश्यक है?" घसमजस का आधार है। इस कहानी को पढ़ने के बाद पाठक के मन में दो प्रश्न उठते हैं––