पृष्ठ:उपहार.djvu/१३१

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समझ.[जाय । आज 'त्योहार का दिन,,और 'यह, जांयगो अखिलेश के घर उसे राखी बांधने । जो लोग अपने घर आवेंगे वे कदाचित दीवारों से बातचीत करेंगे? और फिर क्या अखिलेश को यह घर मालूम नहीं है ? चाहते तो क्या आ न सकते थे? अंतो कुछ घवरा सी उठी बोली- "जाने भी दो विनोद भैय्या! त्योहार के दिन गुस्सा नहीं करते"। विमला चुपचाप हाथ में सरौता सुपारी ज्यों का त्यों लिये बैठी थी। पान सामने पड़े थे। उसकी आंखों से वरवस आंसू गिरे पड़ते थे। विनोद को विमला का यह बर्ताव बहुत खल रहा था। अंतो को बात के उत्तर में यह फिर उसी क्रोध भरे स्वर में बोल उठे- "त्यौहार के दिन गुस्सा तो नहीं किया जाता अंतो, पर रोया जाता है। सो मैं अपनी किस्मत को रोता हूं। पिता जी ने न जाने कब का वैर निकाला; जो नाहक हो बैठे बैठाए मेरे गले से यह चला बांध दी। देख रही हो न? खाना इसी प्रकार तो खिलाया जाता है हमारे सामने थालियां परोस कर, वे आंसू बहा रही हैं, तो हम लोग भी मर-भुखे नहीं हैं। खाना दूसरी जगह भी तो खा सकते हैं"? कहते हुए विनोद अंतो का हाथ पकड़ कर थाली पर से उठ गए|विमला ने किसी को रोका नहीं । उसकी मानसिक स्थिति पागलों से भी खराब थी। उसने राखियाँ को उठा कर दूर फेंक दिया । फल और मिठाई उठा कर नौकरों को दे दी, माला को मसल कर दूर फेंक कर, वह खाट F. 7