पर गिर पड़ी और फूट फूट कर रोने लगी। अखिल का पवित्र प्रेम, उनका मधुर व्यवहार,उन दो नहे नहे अयोध यच्चों के द्वारा राखी का अभिनय, एक एक करके अतीत की सय स्मृतियां, उसके सामने साकार बन कर खड़ी हो गई। आज उसकी वही स्नेह ही लता, जिसे दो नहे नहे अयोध बालकों ने अपनी पवित्रता पर आरोपित किया था, जिसे दो तरुण हृदयों ने अपनी दृढ़ता से मजबूत बनाया था, एक मिथ्या सन्देह के आधार पर, किस निर्दयता से कुचली जा रही थी। विमला कांप उठी। वह पलंग पर उठ कर बैठ गई और अपने श्राप ही योल उठी- "हे ईश्वर ! तू साक्षी है। यदि मैं अपने पथ से ज़रा भी विचलित होंऊ, तो मुझे कड़ी से कड़ी सज़ा देना। पतिव्रत धर्म, स्त्री का धर्म, तो यही है न ? कि पति की उचित, अनुचित श्राशाओं का चुपचाप.पालन किया जाय । वह मैं कर रही हूं विधाता! पर इतने पर भी यदि मेरो दुर्बल आत्मा अपने किसी आत्मीय के लिए पुकार उठे तो मुझे अपराधिनी न प्रमाणित करना"| इसी समय उसकी मां की भेजी हुई मिश्रानी, फल, मिठाई और मेवा इत्यादि लेकर आई । विमला भरी नां बैठी ही थी; मिश्रानी को देखते ही बरस पड़ी। उसने क्रोध-भरे स्वर में कहा- मिश्रानी, यह सब क्यों ले आई हो? ले जायोः मैं क्या करूंगी लेकर ? मां से कहना मेरे लिये कुछ भेजा न करें, समझ लें आज से विग्नो मर गई।
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