वहां प्रवेश किया। मां को देखते ही उसका-रहा सह धीरज भी जाता रहा। मां से लिपट कर वह खूब रोई | मां बेटी दोनों बहुत देर तक बिना कुछ बोले-चाले रोती रहीं, अंत में कमला ने किसी प्रकार विमला को शान्त किया । मा के बहुत पूछने पर विमला ने मां से सब कुछ बतला दिया। इस बात से कमला को कष्ट न हुआ हो से बात नहीं थी, परन्तु विमला को वह किसी प्रकार शान्त करना चाहती थीं, इसलिये अपनी मार्मिक घेदना को हृदय में ही छिपा कर यह शान्त स्वर में विमला को समझाती हुई बोली- "बेटी ! विनोद की बातों का तुम्हें बुरा न मानना चाहिए । इतना तो समझा करो कि वह तुम्हे कितना अधिक प्यार करते हैं। तुम्हारे ऊपर यदि विनोद का इतना अधिक स्नेह न होता तो वह तुम्हारी इतनी नही नंही हो बातों को इतनी बारीकी से देखते भी ता नहीं"। मा की बातों से विमला को कुछ सान्त्वना मिली हो चाहे नहीं, पर वह कुछ बोली नहीं। बहुत रात तक विनोद की प्रतीक्षा करन पर भी जब विनोद न लौटे तो कमला विमला को समझा बुझा कर अपने घर चली आई। विनाद अखिलश के घर चले गये थे, इसलिए उन्हें घर लौटने में कुछ देरी हागई। जय विनोद अकेले ही अंखिलश के घर पहुंचे तो वह कुछ चकित से हुए परन्तु विमला के विषय में स्वयं यह कुछ पूछ न सके, विनोद को ही वह विषय छेडंना पड़ा। रात को बहुत सी बातें तो विनाद के ही द्वारा उन्हें मालूम हा चुकी थीं। दूसरे
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