अन्यथा, चोरी के अभियोग में उसे जेल के सींकचों में सड़ने
के लिए भेज कर, कामान्ध वैरिस्टर गुप्ता उसकी सच्चरित्रता
का पुरस्कार उसे दिला ही देते। कहानी में हमारे आधुनिक
न्यायालयों की अपूर्णता तथा उनकी सत्यासत्य कसौटी की
भ्रमात्मकता को ओर भी कलात्मक संकेत कर दिया गया है।
इस कहानी में विस्मय-तत्व का समावेश सुन्दर ढंग पर
हुआ है। रवीन्द्रनाथ वी विचारक कहानी बहुत-कुछ इसी
ढंग की है।
सोने की कण्ठी--यह मानवीय दुर्बलता की एक दुखान्त
घटना है। मानव-जीवन और विशेषकर दरिद्र मनुष्यों की करण
दीनता का इसमें सुन्दर चित्र खचित है। न्यूनाधिक माना में, हम
सबके हदय में ऐश्वर्य की अभिलाषा, वैभव की आकांक्षा खेलती
रहती है, फिर ग़रीब लोगों की सुख-लालसा, वेभव-
पिपासा किस से छिपी है? सम्पत्तिशाली व्यक्तियों को,
विशाल मासादों में विलासिता और सुख के बीच में रहते
देखकर,आमोद-प्रमोद से चिंता-मुक्त होकर क्रीडा करते देखकर
उन निर्धनों की सोयी हुई इच्छाएँ कितनी बार नहीं जाग उठतीं?
दरिद्रजनों के हृदय में न जाने ऐसी कितनी ही अतृप्त,
मीठी मनुहारें सतत क्रन्दन किया करती हैं, किन्तु उनको
सफल बनाने का प्रयत्न करना मानों उन दरिद्रजनों
का अपने लिए निराशा और दुख को आमन्त्रित करना
है। विंदो की गहने-कपडे की प्रबल अभिलाषा भी उन्हीं
अतृप्त आकांक्षाओं में से एक है। स्त्री होने के कारण आभूषणों
की ओर अधिक आकर्षित होना भी उसके लिए अत्यन्त स्वाभा-
विक है। वह बेचारी भी ऐसे ही भाग्य के मारे ग़रीय घर की
लडकी है, जिसके मन में सुन्दर वस्तुओं के पाने की स्वा-
भाविक इच्छा सदा छटपटाती रहती है। सोने-सी सुन्दर