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इस कहानी का अंत अत्यंत कलापूर्ण, अकल्पित अतएव प्रभावोत्पादक हुआ है। वह समूची कहानी को ताज़ी शक्ति, नयी तीव्रता और नवीन गति से भर देता है। पाठक ने इस अंत की सम्भवतः कल्पना भी नहीं की थी। मोपासाँ (Guy de Maupassant) की चन्द्राहार (necklace) कहानी में हमें ऐसा ही अकल्पित, चमत्कारपूर्ण और कलात्मक अंत देखने को मिलता है। परन्तु वहाँ विस्मय हमारे हर्ष का कारण बनता है; यहाँ विस्मय की मात्रा हमारी करूणा कादम्बिनी को आँसू बनाकर बरसा जाती है।

कहानी में वर्णित घटनाएँ और तज्जनित परिस्थितियाँ अत्यन्त स्वाभाविक हैं। ग़रीब घरों की बहू-बेटियों पर कुदृष्टि रखनेवाले रायसाहब के समान नर पिशाचों की हिन्दू-समाज में कोई कमी नहीं। ऐसे ज़मीदार और रईसों की हमारे यहां बहुलता है। भोली-भाली बिन्दो का उनके चंगुल में फस जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं। कहानी में कोई घटना निरर्थक नहीं कही जा सकती। वह कहानी के प्रधान उद्देश्य के किसी-न-किसी अंग की पूर्ति करती है। घटनाओं का क्रम और कथानक का विकास जैसा चाहिये वैसा ही हुआ है। पहले बिन्दो की ऐश्वर्य-लालसा की स्वाभाविकता का दिग्दर्शन कराकर पाठक के हृदय की सहानुभूति प्राप्त कर ली जाती है। उसकी इच्छा कितनी उत्कट थी, यह दिखाने के लिए उसके नैहर और ससुराल दोनों कुटुम्बों की परिस्थितियों का वर्णन किया जाता है। फिर उसका पतन और अन्त में, सत्य का वह भीषण उद्घाटन इस करण कहानी को समाप्त करता है। कहानी के अन्त में जो नाटकीय विस्मय है उसकी तीव्रता बड़ी मार्मिक है। यह कहानी बहुत सुन्दर और प्रभावशालिनी हुई है।