नारी हृदय में प्रमीला घर-बाहर को ठुकराई हुई एक अभागिनी अबला है जिसे एक पुरुष प्रेमाभिनय दिखला-- कर अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। काम वासना की तृप्ति हो चुकने पर वह उस अनाथ विधवा को ठुकरा देता है। अभागिनी प्रमीला की परिस्थिति और अवस्था का वर्णन उसी के शब्दों में सुनिए --
"कल से आप मुझ से बात ही न करना चाहें तो मैं आपका क्या कर सकती हूं? मुझे क्या अधिकार है, सिवा इसके कि कलेजे पर पत्थर रख कर सब चुपचाप सहलू। मैं खुल कर रो भो तो नहीं सकती, मुझे इतना भी तो अधिकार नहीं।"
अन्यत्र एक पत्र में वह कहती है --
"यदि किसी से कुछ कहने मी जाऊँ तो सिवा अपमान और तिरस्कार के मुझे क्या मिलेगा? आपको तो कोई कुछ भी न कहेगा; आप फिर भी समाज में सिर ऊँचा करके बैठ सकेंगे।"
इस प्रकार, इस कहानी में भी पुरषों का स्त्रियों के साथ अमानुषिक आचार तथा समाज का पुरूषों के लिए पक्षपात प्रदर्शित है। इस कहानी में कहीं-कहीं पर बड़े कोमल और करुण भाव मिलते हैं। एक स्थान पर प्रमीला कहती है --
"परमात्मा ने स्त्री-जाति के हृदय में इतना विश्वास, इतनी कोमलता और इतना प्रेम शायद इसीलिए भर दिया है कि पग-पग पर वह ठुकराई जावे।"
पवित्र ईर्षा--पत्नी का सदा अपनी इच्छा के अनुकूल ही
चलाने की प्रवृत्ति पति में दृष्टिगोचर होती है। वह अपनी