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धीमे उडेल देने की आकांक्षा कभी न-कभी प्रत्येक हृदय में खौल उठती है। विशुद्ध अनुराग की इस अदम्य प्रेरणा से, आत्मोत्सर्गी की इस प्रबल भावना से एक न एक दिन प्रत्येक व्यक्ति का जीवन, चाहे वह पुरुष हो चाहे स्त्री, और स्त्री में चाहे वह कुलीन हो चाहे अकुलीन,अधिष्ठित होता है। छाया का प्रमोद में अनुरक्त होना इसी का स्वाभाविक परिणाम है । परन्तु क्योंकि उसकी यह प्राकृत अभिव्यक्ति भी उसके वेश्या-चरित्रमुलभ अनुराग अभिनय में सम्मिलित समझी जाती है, इसलिए यह प्रकृति सिद्ध प्रेरणा भी उसके लिए दुखदायी ही सिद्ध होती है । छाया की आत्म हत्या का बहुत-कुछ यही कारण है, और यही कारण है वेश्या की लडकी के मर्मान्तक कहानी होने का । यचपन से ही कुलीन बालिकाओं के संसर्ग में आने जाने के कारण, उनके सरल, सात्विक जीवन की निर्मलता को परख लेने के बाद, अपनी माता की घृणित दिनचर्या से असन्तुष्ट होना भी छाया के लिये अस्वाभाविक नहीं । जघन्य जीवन के प्रति घृणा उत्पन होती ही है । अवयव एक कुल-वधू का जीवन विताने के लिए छाया का उत्कण्ठित होना प्रधानत माता के कुत्सित जीवन की प्रतिक्रिया का ही परिणाम है।

इस कहानी में प्रमोद के माता पिता का चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक और सुन्दर हुआ है। छाया का चरित्र विकान्ति के सिद्धान्तों पर निर्मित दीखता है। इस दृष्टि से यह प्रस्तुत कहानियों के सभी पात्रों से अधिक आकर्षक ठहरता है। इसके कथानय का निर्वाह भी अच्छे ढंग पर हुआ है।