हटाकर, अधिक विश्रम्म और विश्वास के साथ क्षण भर के लिए ही सही, अपने हृदय की कह-सुन ले।
"Let us talk of each other why should we wear this mask? Let as be confidential Who knows? Wo might become friends"
उसका स्वर, उसकी भाव-भंगि, उसके मनोराग, उसकी चित्तवृत्तियाँ, उसके जीवन की प्रत्येक क्रिया मनुज- भावना के सर्वथा अनुरूप है। स्वयं हीना के मुंह से उसके जीवन की एक घटना का उल्लेख सुनकर ही हमें उसकी मानवता पर सन्देह नहीं रह जाता।
"बड़ी होने पर एक दिन कलूटे कुन्दन ने मुझ से लड़ाई में कह दिया कि हम तुम्हारे सरीखा गोरा गोरा मुंह कहां से लवे । बेचारा कुन्दन क्या जाने कि उसने इन शब्दों में कौन सा जादू फूंक दिया कि फिर मैं उससे पहन सकी, इस बात के उत्तर में उसे पत्थर फेंककर मार न सकी। हां, मैने अन्दर जाकर दर्पण के सामने खड़ी होकर, कुन्दन से अपने मुंह की तुलना अवश्य की।"
[उन्मादिनी]
हीना और बिन्दो, योगेश और प्रमोद, राय साहब और वैरिस्टर गुप्ता हमें पूर्णतया परिचित से प्रतीत होते हैं। वे हमारे समाज के ही व्यक्ति हैं, जिनके संसर्ग में हम अपने प्रतिदिन के जीवन में आते रहते हैं। पवित्र ईष्यार् में विनोद की सृष्टि कर लेखिका ने एक अनुपम पात्र सिरजा है, एक चरित्र गढने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। छाया, कुन्दन, बजांगना विक्रान्ति के सिद्धान्तों पर निर्मित चरित्र हैं। वास्तव में, इन कहानियों के सभी पात्र सजीव और
- R I. Stevenson Marl heim