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सशक्त हैं । हां, अपेक्षाकृत स्त्री-पात्र अधिक प्रभावशाली, ओजस्वी, आकर्षक और सम्पूर्ण हुए हैं। एक स्त्री लेखिका से हम इसकी आशा भी करते हैं। इस दृष्टि से कुमारी जी की कहानियां हमारे लिए अपना विशेष महत्व रखती हैं। कुमारीजी ने अपने स्त्री-पानी के चरित्र-चित्रण में नारी-हृदय के उन रहस्यपूर्ण, निभृत स्थलों पर प्रकाश डाला है, जो एक पुरुष-लेखक के लिए यदि अगम नहीं तो दुर्गम अवश्य कहे जा सकते हैं । लेखिका को बोध-वृत्ति अपने आपको इन कहानियों में प्रधानतः उन मनोभावों, मनोवेगो, भावनाओं और चित्तचेष्टाओं के विश्लेषण तथा प्रकटीकरण में संलग्न रखती है जिनका सम्बन्ध विशेषत: नारी से है जो पूर्णतया ख़ैर ही हैं।

मैं ऊपर कह चुका है कि कुमारी जी ने अपने पात्रों के चरित्र-चित्रण में यथार्थता ओर वास्तविकता से ही काम लिया है। मानव-जीवन और मनुज-स्वभाव का सच्चा चित्र खींचा है। धर्म और सदाचार का भय उन्हें सत्य का स्वरूप उपस्थित करने से नहीं रोक सका है। इससे मेरा यह तात्पर्य नहीं कि लेखिका ने अपनी कहानियों में भौति और सचरित्रता के प्रति उपेक्षा का भाव प्रदर्शित किया है। नहीं, अवेहलना की बात तो दूर रही, कुमारी जी ने उनके प्रति उदासीनता भी नहीं दिखलायी है। अपनी कहानियों में जो मनुष्य जीवन का चित्र खींचेगा वह मनुष्य जीवन से पूर्णतया सम्बद्ध (यास्तव में उसी के एक अंग) नीति के प्रति उदासीन कैसे रह सकता है? मेरा अभिप्राय तो केवल इतना है कि सदाचार की शिक्षा देने की आतुरता ने पात्रों