था। इस घटना को हुए करीब एक महीना बीत गया । लगातार रोज प्रतीक्षा करके भी इसके बाद फिर मै कुन्दन को न देख सकी।
जेठ का महीना था बगीचे का एक माली छुट्टी पर गया था । बूढ़ा माली एक मेहनती आदमी की तलाश में था। चार बजे तक घर में वन्द रह कर गर्मी के कारण घबरा कर मैं अपनी सास के साथ बगीचे में चली गई। वहीं बगीचे में मौलसरी की घनी छाया में चबूतरे पर मैं सास के साथ बैठी थी। बार बार यही सोचती थी कि कुन्दन कहाँ चला गया ? कपड़ा लेकर फिर क्यों नहीं आया? बीमार तो नहीं पड़ गया? और अगर बीमार होगया होगा तो उसकी देख भाल कौन करता होगा? मेरी आँखों में आँसू आगये । इसी समय पीछे से आकर बूढ़े माली ने कहा “सरकार यह एक आदमी है जो माली का काम कर सकता है हुकुम हो तो रख लिया जाय ।" मैने जो मुड़कर देखा तो सहसा विश्वास न हुआ। कुन्दन ! और माली का काम ! मेरी बेसुध वेदना तड़प उठी। एक सम्पन्न परिवार का होनहार युवक १०) माहवार की मालीगिरी करने आए ! इतनी कड़ी तपस्या !! हे ईश्वर ! क्या इस तपस्या का अंत न होगा?
१०) माहवार पर कुन्दन बगीचे में माली का काम करने लगा। मैं देखती,कड़ी दोपहरी में भी यह दिन दिन भर कुदाल चलाया करता, पानी सींचता और टोकनी भरभर मिट्टी ढोता। उसका शरीर अय दिन दिन दुवला और सांवला पड़ता