पृष्ठ:उपहार.djvu/५६

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१३


रहती हैं जो दोपहर को भी बगीचे में जाया करती हो। कितनी बार तुमसे कहा कि नौकरों स बात चीत करने की तुम्हें जरूरत नहीं है पर तुम्हें मेरी बात याद रहे जय न? तुम इस बात को भूल जाती हो कि तुम एक इंजीनियर की स्त्री हो तुम्हें मेरी इन्नत का भी ख्याल रखना चाहिए।"

मैं कुछ न बोली ? बोलती भी क्या ? मैने चुप रहना ही उचित समझा, मुझे उससे क्या बात चीत करनी रहती है मैं उन्हें क्या बतलाती? वह बतलाने की बात नहीं किन्तु समझने को बात थी और उसे यही समझ सकता था जिसके पास हृदय हो। जिसके पास हृदय ही नहीं वह हृदय की बात क्या समझे? मेरी इस चुप्पी का अर्थ उन्होंने चाहे जो कुछ लगाया हो किन्तु उनकी इस बाधा से मुझे बड़ी वेदना हुई। कुन्दन से दो चार मिनट बात कर के न तो में उनका कुछ बिगाड़ देती थी और न कुन्दन को ही कुछ दे देती थी, फिर भी कुन्दन से मिलने में उन्हें इतनी आपत्ति क्यों थी कौन जाने । चाहे जो हो इस बाधा का परिणाम उल्टा ही हुआ। ज्यो ज्यों मुझे उसके पास जाने से रोका गया, त्यो त्यों उसके पास पहुंचने के लिए मेरी उत्लंठा प्रबल होती गई।

[ ५ ]

गर्मी की रात थी। बगीचे में बेले इस प्रकार खिले थे जैसे आसमान में सारे फैले हो। मैं उन्हीं बेलो के पास एक संगमर्मर की बेंच पर बैठी थी। कई दिन हो गये थे कुन्दन वगीचें में काम करता हुआ न दिखा था। यह कहाँ गया ? काम करने क्यों नहीं आता? यद्यपि यह जानने के लिए मैं