भेजी जाय। “यह न्यायालय तो केवल न्याय के
ढोंग के लिए ही होते हैं," न्यायके नामसे सरासर अन्याय होता है;" "अदालतें धनवानों की
ही हैं, गरीबों की नहीं;" इस प्रकार की अनेक आलोचनाएं कानाफूसी के रूप में दर्शकों के मुंह
से निकल रही थीं । अन्त में मजिस्ट्रेट की आवाज से अदालत में निस्तब्धता छा गयी।
उन्होंने अभियुक्ता से पूछा-
"क्या तुम इस बात का सबूत दे सकती हो कि यह चेन तुम्हारी है ?"
"जी हां।"
"क्या सबूत है ? तुम्हारे कोई गवाह हैं ?"
"मेरा सबूत और गवाह वही चेन है,"--अभियुक्ता ने चेन की ओर
इशारा करते हुए कहा।
सबने संदेह-सूचक सिर हिलाया। कुछ ने सोचा शायद यह लड़की पागल हो गयी है।
मजिस्ट्रेट ने पूछा- "वह कैसे?" अब उनकी दिलचस्पी और बढ़ गयी थी।
"चेन मेरे हाथ में दीजिये, मैं आप को बतला दूंगी।"
मजिस्ट्रेट के इशारे से कोर्ट साहब ने चेन उठा कर अभियुक्ता के हाथ में दे दी।
चेन दो-लड़ी थी और उसके बीच में एक हृदय के आकार का छोटा-सा लाकेट
लगा था, जो ऊपर से देखने में ठोस मालूम पडता था; परन्तु अभियुक्ता ने
उसे इस तरह दबाया कि वह खुल गया। उसे खोलकर उसने मजिस्ट्रेट साहब
को दिखलाया, फिर बोली-
"यही मेरा सबूत है, यह मेरे पिता की तसवीर है।"