मजिस्ट्रेट ने उत्सुकता से वह लाकेट अपने हाथ में लेकर देखा- देखा, और देखते ही रह गए । लाकेट के अन्दर एक २० वर्ष के युवक का फोटा था। मजिस्ट्रेट ने उसे देखा उनकी दृष्टि के सामने से अतीत का एक धुंधलासा चित्रपट फिर गया।
बीस वर्ष पहले वह कालेज में बी० ए० फाइनल में पढ़ते थे।
उनके मेस की महराजिन बुढ़िया थी, इसलिए कभी-कभी उनकी नातिन भी
रोटी बनाने आ जाया करती थी। उसका बनाया हुआ भोजन बहुत मधुर
होता था। वह थी भी बड़ी हंसमुख और भोली। धीरे-धीरे वह उसे अच्छी
अच्छी चीजें देने लगे। छिप छिपकर मिलना-जुलना भी आरम्भ हुआ ।
वह रात के समय बुढ़िया महराजिन और उसकी नातिन को उसके घर
तक पहुँचाने भी जाने लगे। एक रात को वह लड़की अकेली थी। चाँदनी
रात थी और वसन्ती हवा भी चल रही थी । घने वृक्षों के नीचे अन्धकार
और चांदनी के टुकडे आँख-मिचौनी खेल रहे थे। वहीं कहीं एकान्त स्थान में
उन्होंने अपने आपको खो दिया।
कालेज बन्द हुआ, और बिदाई का समय आया। उस रोती हुई प्रेयसी को
उन्होंने एक सोने की चेन मय फोटोवाले लाकेट के
अपनी यादगार में दी। सिसक्यिों और हृदय-स्पन्दन के साथ बड़ी कठिनाई से
वह विदा हुए । यह उनका अन्तिम मिलन था। उसके बाद वह उस कालेजमें
पढ़ने के लिए नहीं गये, क्योंकि वहां ला क्लास नहीं था। वह धीरे-धीरे उन सब
बातों को स्वप्न की तरह भूल गये। किन्तु, आज इस लाकेट ने उनके उस प्रणय के
परिणाम को उनके सामने प्रत्यक्ष लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने सोचा "तो